वंदे मातरम्” गीत के रचना के 150 वर्ष पूर्ण… दुर्ग में सामूहिक गायन कार्यक्रम का आयोजन

दुर्ग। राष्ट्र सेविका समिति द्वारा “वंदे मातरम्” गीत की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर सामूहिक वंदे मातरम् गायन कार्यक्रम का आयोजन दुर्गा मंच, हुडको के प्रांगण में किया गया। यह कार्यक्रम कार्तिक शुक्ल नवमी, अक्षय नवमी के दिन, यानी 7 नवंबर 1875 को “वंदे मातरम्” के रचनाकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में माननीय साध्वी हरि ओम ने कार्यक्रम में आशीर्वाद दिया। वहीं मुख्य वक्ता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत जनजाति कार्य प्रमुख सतीश गोकुल पंडा ने वंदे मातरम् के इतिहास और अर्थ पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने इसे केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्त्रोत बताया। उन्होंने यह भी बताया कि यह गीत भारतीयों के बीच राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक बन गया था। उन्होंने कहा वंदे मातरम कोई विषय नहीं, यह माँ भारती के प्रति एक दिव्य एवं भव्य भाव है जो हर भारतीयों में स्फूर्ति एवं चेतना का संचार करता है। उन्होंने बताया कि वंदे मातरम वह वेद मंत्र है जिसने सिर्फ बंगाल के नहीं, अपितु संपूर्ण भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को बलिदान वेदी तक जाने की प्रेरणा दी।

एक सम्पन्न, शिक्षित एवं संस्कारी परिवार में जन्मे श्री बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय जी का भूखे किसानों को लगान न चुका पाने की स्थिति में 40 कोड़ों की सजा ने व्यथित कर दिया। उनका विचलित मन यह सोचने को बाध्य हो उठा कि मेरी मातृभूमि इतनी बेबस, रक्त रंजित एवं बेड़ियों से जकड़ी कैसे हो सकती है? भागीरथी नदी में मछुआरे द्वारा गाए जाने वाले एक लोकगीत की मधुर टेर सुनकर बंकिम चंद्र जी की लेखनी को इस गीत के लिए भाव एवं शब्द मिले।

पाँच पदों के इस गीत में माँ भारती की संपन्नता, शक्ति एवं अलौकिकता का उल्लेख किया गया है। भारत माता अपने प्राकृतिक सुंदरता-सम्पन्नता के साथ-साथ त्रिदेवियों की भांति सक्षम और शक्तिशाली है। यह हमारे लिए वंदनीय हैं…. पूजनीय हैं। सर्वप्रथम इस गीत को रविंद्र नाथ जी ने 1896 में गाया था। सभी कांग्रेस अधिवेशनों में, वैभव वर्णित भारत माता के इस गीत को गाया जाने लगा। हर विजय यात्रा में, अभिवादन में, समाचार पत्रों के नाम, ध्वज पर, पत्र का प्रारम्भ, घर की चौखट पर, साड़ी के किनारों पर, विद्यार्थियों की पुस्तकों के पहले पृष्ठ पर, वंदे मातरम् अंकित होने लगा। धीरे-धीरे छःअक्षर का यह “वंदे मातरम्” अनेक प्रतिबंधों के बेड़ियों को तोड़कर ऊर्जा शक्ति एवं मातृभक्ति की ऐसी लहर बन गया जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही थमा। आज भी यह गीत हर भारतीय के हृदय का पहला भाव एवं हर कंठ का पहला गान है।

कार्यक्रम में राष्ट्र सेविका समिति, छत्तीसगढ़ प्रांत की कार्यवाहिका श्रीमती प्राजक्ता देशमुख जी, प्रांत सह कार्यवाहिका श्रीमती अजिता गनोदवाले जी एवं दुर्ग विभाग की कार्यवाहिका श्रीमती राखी विश्वास जी एवं अन्य सभी सेविकाएँ उपस्थित थी। लगभग 500 देशभक्तों की उपस्थिति में वंदे मातरम् गीत के, सस्वर सामूहिक गायन से वातावरण गुंजित हो उठा। विभिन्न संगठनों, विविध मंडलियों एवं व्यक्तिगत रुप से आये जन मानस ने विविध भाषाओं में वन्दे मातरम् लिखकर अपने भावाक्षर अंकित किए।

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