दुर्ग में साहित्य अकादमी द्वारा हरिषंकर परसाई पर जन्मशती संगोष्ठी का हुआ आयोजन… देशभर से साहित्यकार हुए शामिल; कॉलेज की पत्रिका समाचार के नये अंक का भी विमोचन हुआ

  • परसाई का लेखन भारतीय समाज के कायान्तरण और रूपान्तरण का लेखन है: रविभूषण

दुर्ग। साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग और शासकीय दानवीर तुलाराम स्नातकोत्तर महाविद्यालय उतई के सहयोग से हरिषंकर परसाई जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय स्तर के इस आयोजन में बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ एवं छत्तीसगढ़ के बाहर से साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों ने षिरकत किया। इस अवसर पर महाविद्यालय की पत्रिका कॉलेज समाचार के नये अंक का विमोचन भी किया गया।

राधाकृष्णन सभागार साईंस कालेज दुर्ग में आयोजित इस आयोजन के उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादमी नई दिल्ली के उपसचिव देवेन्द्र कुमार देवेष ने साहित्य अकादमी की स्थापना कार्यप्रणाली आयोजन और उद्देष्य पर गंभीरता से प्रकाष डालते हुए अकादमी की विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों यथा पुस्तक प्रकाषन, अनुवाद, पुस्तक प्रदर्षनी, कार्यषाला, पुरस्कार आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी। आरंभिक वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादमी नई दिल्ली की सामान्य परिषद के सदस्य डॉ. सियाराम शर्मा ने कहा कि जब साहित्य की समस्त विधाएंँ चूक जाती हैं, तक व्यंग्य की आक्रामकता की जरूरत होती है। व्यंग्य में सम्पूर्ण समाज की कमजोरियों, विदू्रपताओं को उभारने का गहरा प्रयास होता है। हरिषंकर परसाई ने व्यंग्य विधा को साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने आजादी के बाद भारतीय समाज की विसंगतियों पर गहरा प्रहार किया। परसाई के व्यंग्य में आम जनता के लिए प्रतिबध्दता है।

बीज वक्तव्य देते हुए रांची से उपस्थित प्रख्यात हिन्दी आलोचक रविभूषण ने कहा कि परसाई की कृतियों से गुजरना उनके समय समाज से गुजरना है। वे स्वाधीन भारत के सजग प्रहरी थे। एक लेखक मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए लिखता है। परसाई का लेखन भी बेहतर मनुष्य और न्यायपूर्ण समाज बनाने की दिषा में उद्यम है। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए दुर्ग संभाग के अतिरिक्त संचालक, उच्च षिक्षा डॉ. राजेष पाण्डेय ने कहा कि परसाई ने पूरी व्यवस्था का अध्ययन किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं में मनुष्य और समाज के दोहरे चरित्र को तल्खी से लिखा है। उद्घाटन सत्र का समाहार वक्तव्य देते हुए शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के प्राचार्य डॉ. एम.ए. सिद्दिकी ने कहा कि दुर्ग भिलाई में परसाई जी की रचना धर्मिता पर आयोजन सौभाग्य का विषय है। आज के भ्रष्ट एवं दिषाहीन समय में परसाई जी का लेखन हमारे समय और समाज के लिए पथ प्रदर्षक है। उनकी भाषा आम आदमी की भाषा है। उनका विषय वस्तु हमारे बीच का होने के कारण जनमानस में काफी लोकप्रिय है। उद्घाटन सत्र का आभार ज्ञापन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने किया।

प्रथम सत्र में हरिषंकर परसाई: जनतंत्र का गद्यात्मक भाष्य पर अधिकारी वक्ताओं ने विचार व्यक्त किये। बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय से उपस्थित युवा आलोचक डॉ. आषीष त्रिपाठी ने कहा कि परसाई ने जिस गद्य का इस्तेमाल किया वह रूप उसके पहले किसी ने नही किया था। परसाई को व्यंग्य विधा तक सीमित कर देना उनके कद को छोटा कर देना है। परसाई ने गद्य को जनतांत्रिक बनाया और गद्य की सीमाओं को तोड़ा। उन्होंने जनविरोधी गठजोड़ के रेषे रेषे को अलग किया। वरिष्ठ व्यंग्यकार विनोद साव ने कहा कि परसाई का लेखन जड़ता को तोड़ने की कोषिष है। वे अपने समूचे लेखन में प्रतिपक्ष के नेता हैं। उनका लेखन जड़ता के बन्धन से मुक्ति का स्वर है। उन्हें राजनीतिक विद्रूपताओं के लेखन में महारथ हासिल थी। उन्होंने अपने लेखन में व्यवस्था का निर्भयता से चीरफाड़ किया हैं। दिल्ली विष्वविद्यालय से उपस्थित आलोचक एवं संपादक आषुतोष कुमार ने कहा कि हमने व्यंग्य को वह महत्व नही दिया जिसका वो हकदार था। स्वतंत्र विधा के रूप में व्यंग्य एक शक्ति है, जिसे ठीक से अब तक पहचाना नही गया। उन्होंने समाज में व्यंग्य की उपेक्षा पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि परसाई का व्यंग्य मनोरंजन नही करता बल्कि वह परिवर्तनकामी है, वह बेचैन करता है। प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली से उपस्थित वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने कहा कि परसाई मूलतः लोकतंत्रवादी थे। वे षिल्प की दृष्टि से भी लोकतंत्रवादी थे। लोगों ने परसाई जी को व्यंग्य विधा तक ही सीमित कर दिया, जबकि परसाई के कारण ही व्यंग्य असीम हुआ है। वे आमजन के लेखक हैं। समाज जब भी विकृत हुआ है, लेखक विरोध की भूमिका में उतरा है। परसाई जी अपने समय समाज की विसंगतियों के योध्दा थे।

द्वितीय सत्र में हरिषंकर परसाई की कथा दृष्टि और व्यंग्य बोध पर विचार विमर्ष हुआ। प्रख्यात आलोचक डॉ. जयप्रकाष ने कहा कि परसाई हिन्दी के संभवतः पहले ऐेसे रचनाकार हैं, जिन्होंने अपने विचार स्तंभों के माध्यम से व्यक्त किये। एक कथाकार के रूप में नई कहानी के दौर में परसाई जी उपेक्षित रहे। उनके कथा लेखन की ओर उनके समय में लोगों ने ध्यान नही दिया। व्यंग्य को पैदा करने के लिए विडम्बना का परसाई जी ने रचनात्मक उपयोग किया है। परसाई के लेखन में मिथकों का जितने बड़े पैमाने पर प्रयोग हुआ है, उतना दूसरा दिखायी नही देता। जीवन और विचार धारा के प्रति उनका भरपूर समर्थन रहा। उन्होंने खुले तौर पर असहमति और प्रतिरोध को कहानी में स्थान दिया। अम्बिकापुर से उपस्थित वरिष्ठ कथाकार प्रभु नारायण वर्मा ने कहा कि परसाई हमारी व्यवस्था को बार बार नंगा करके उठाते है, उस पर कठोर आक्षेप करते है। परसाई जी के लेखन की विविधता और कहीं दिखायी नही देती।

दुर्ग से उपस्थित वरिष्ठ कथाकार कैलाष बनवासी ने कहा परसाई का साहित्य आजादी के बाद देष की सत्ता व्यवस्था और समाज को समझने का दस्तावेज है। उनकी कहानी कला में उनकी मौलिकता परसाईपन स्पष्ट रूप से दिखता है। वे अपनी कहानियों में अलग तरह की दुनिया लेकर आते है। परसाई जी 360 डिग्री के बैट्समैन की तरह थे, उनकी कहानियों में विषय वस्तु 360 डिग्री में दिखायी देती है। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता कर रहे जबलपुर से उपस्थित वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र दानी ने कहा कि परसाई अपनी परंपरा का जिक्र अपनी कहानियों में करते हैं। उनका लेखन शताब्दियों तक प्रांसगिक रहेगा। वे अपनी रचनाओं में विचार और तथ्य ठोस जमीन से उठाकर रखते हैं। अंत में धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रीता गुप्ता एवं डॉ. जयप्रकाष ने किया।

इस अवसर पर हिन्दी विभाग से डॉ. बलजीत कौर, डॉ. कृष्णा चटर्जी, डॉ. रजनीष उमरे, डॉ. सुबोध देवांगन, डॉ. ओम कुमारी देवांगन, डॉ. सरिता मिश्र, डॉ. शारदा सिंह, डॉ. लता गोस्वामी, सुषमा कौषिक सहित शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग और शासकीय दानवीर तुलाराम स्नातकोत्तर महाविद्यालय उतई के अन्य विभागों के प्राध्यापकगण एवं कर्मचारीगण और वरिष्ठ साहित्यकार रवि श्रीवास्तव, डॉ. कोमल सिंह शार्वा, डॉ. ए.ए. खान, डॉ. ए.के. मिश्रा, डॉ. ए.के. श्रीवास्तव, राकेष मिंज, लोकेष्वर ठाकुर, डॉ. शुभा शर्मा, डॉ. विद्या पंचागम, डॉ. सीमा अग्रवाल, अर्चना पाण्डेय, डॉ. पी. वसंतकला, थानसिंह वर्मा, डॉ. शंकर निषाद, विद्या गुप्ता, राजकुमार सोनी, परमेष्वर वैष्णव, रजत कृष्ण, शैलेन्द्र साहू , पथिक तारक, भुआल सिंह ठाकुर, अम्बरीष त्रिपाठी, मांझी अनंत, मुमताज सहित राजनांदगांव, रायपुर एवं धमतरी के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। शोधार्थी बेलमती, निर्मला, लक्ष्मीन, संग्राम सिंह निराला, अतुल, छोटेलाल, षिल्पी, मोरध्वज, तोरण लाल, जितेष्वरी साहू, पूर्णिमा, प्रियंका यादव, नरोत्तम, एमन साहू की आयोजन को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका रही।

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