हसदेव अरण्य मामले में बड़ा अपडेट: बिलासपुर हाईकोर्ट ने ग्रामीणों की याचिका खारिज की, इधर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को भेजा नोटिस

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य जंगल को खनन परियोजनाओं से बचाने के लिए ग्रामीणों की कानूनी लड़ाई को झटका लगा है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बुधवार को भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली ग्रामीणों की याचिका को खारिज कर दिया है।

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इससे ही जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड और परसा केते कॉलरीज को नोटिस जारी किया है। इनसे चार सप्ताह में जवाब मांगा गया है।

अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बुधवार को इस मामले में पैरवी की। उन्होंने अदालत को बताया, हसदेव अरण्य जंगल नो गो एरिया घोषित था। इसमें परसा ईस्ट केते बासन खदान को दी गई अनुमति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में ही रद्द कर दिया था।

ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्यजीव संस्थान और इंडियन काउंसिल आफ फारेस्ट्री रिसर्च से इस क्षेत्र में खनन के प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करने को भी कहा था। केन्द्र ने ऐसा अध्ययन कराए बिना ही अन्य खदानों को परमिशन देना जारी रखा।

अब सात साल बाद वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की अध्ययन रिपोर्ट आई है, जिसमें साफ कहा है कि हसदेव के जितने हिस्से में खनन हो गया उसके अलावा अन्य इलाको में खनन न किया जाए। इसके बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने परसा ईस्ट केते बासन खदान के दूसरे चरण और परसा खदान को अनुमति दे दी है। इसमें 4 लाख 50 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इसकी वजह से इस क्षेत्र में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ेगा।

राजस्थान विद्युत उत्पादन कंपनी और खनन कंपनी की कोयले की जरूरत वाली दलील के जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा कि नो गो एरिया के बाहर बहुत से कोल ब्लॉक है जहा पर्याप्त कोयला उपलब्ध है। ऐसे में जैव विविधता से भरपूर एक जंगल में खनन की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। सुनवाई के बाद खण्डपीठ ने 4 सप्ताह में जवाब देने के लिए निर्देश दिए हैं। खनन पर स्थगन आदेश जारी करने के आवेदन पर बहस इसके बाद होगी।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार आवेदनों पर जवाब दाखिल करना चाहती है इस लिए अभी तुरंत कोई स्टे ना दिया जाए। राजस्थान विद्युत उत्पादन कंपनी और परसा कॉलरीज की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी तथा अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, राजस्थान को बिजली के लिए कोयले की बहुत जरूरत है।

परसा कोयला खदान से प्रभावित ग्रामीणों ने पिछले साल हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। इसमें कहा था कि सरकार ग्राम सभा की सहमति के बगैर जमीनों का अधिग्रहण कर रही है। यह भूमि अधिग्रहण कानून का उल्लंघन है। इसके लिए सरकार कोल बेयरर एक्ट का उपयोग कर रही है जो नए भूमि अधिग्रहण कानून के बाद से प्रभावी नहीं है।

ऐसे में भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जाए। बुधवार को उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने बताया, हाईकोर्ट का विस्तृत आदेश नहीं मिला है। जैसे ही वह मिलता है उसके अध्ययन के बाद हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।

कंटेंट सोर्स- दैनिक भास्कर

खबरें और भी हैं...
संबंधित

CG ट्रांसफर: कई अधिकारियों के हुए तबादले, GAD ने...

रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने मंत्रालय के चार अधिकारियों की तबादला सूची जारी की है। सामान्य प्रशासन विभाग ने यह आदेश जारी किया है। देखिए सूची...

CBSE बोर्ड रिजल्ट: 10वीं में लावण्या ने हासिल की...

भिलाई। सीबीएसई बोर्ड ने कक्षा 10वीं और 12वीं का रिजल्ट मंगलवार को घोषित कर दिया। जिसमें दुर्ग जिले की बेटी लावण्या यादव ने 10वीं...

साय कैबिनेट ब्रेकिंग: विष्णुदेव मंत्रिपरिषद की बैठक खत्म… बैठक...

रायपुर। छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव मंत्रिपरिषद की बैठक खत्म हो गई है। इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। जिसमे कई फैसले लिए...

रेलवे कमर्शियल इंस्पेक्टर सुसाइड केस : पति का था...

बिलासपुर. रेलवे कमर्शियल इंस्पेक्टर विनीता साहनी के आत्महत्या मामले में पुलिस ने आरोपी पति को गिरफ्तार किया है। जांच में पता चला है कि...

ट्रेंडिंग