रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निवास कार्यालय में आज हरेली पर्व पर खेती-किसानी, कला-संस्कृति, खान-पान और वेशभूषा का अनूठा नजारा देखने को मिला। हरेली पर्व में शामिल लोग छत्तीसगढ़िया परिधान पहने लोक संस्कृति के रंग में सरोबार नजर आए। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री साय एवं मंत्रीगण पारंपरिक वेशभूषा में खुमरी पहने हुए थे।

छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है जहां हर एक अवसर और कार्यों के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग किया जाता रहा है। हरेली पर्व के मौके पर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में इन्हीं पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों का नजारा देखने को मिला जो छत्तीसगढ़ की समृद्धि संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा है कि किसानों की खुशहाली और समृद्धि हमारी सरकार का लक्ष्य है। हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है, यहां की 80 प्रतिशत आबादी का जीवन-यापन कृषि पर निर्भर है। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लेकर खेती-किसानी को समृद्ध बनाने का काम किया है।
मुख्यमंत्री साय आज राजधानी रायपुर स्थित अपने निवास में आयोजित हरेली तिहार कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मौजूद लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने इस मौके पर प्रदेशवासियों को हरेली पर्व की बधाई और शुभकामनाएं दीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 15 साल डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए काम किया है। किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर कृषि ऋण जैसी सुविधाएं सुलभ करायी गई। किसानों से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीदी की जा रही है। छत्तीसगढ़ के किसानों को प्रति क्विंटल 3100 रूपए का मूल्य मिल रहा है, जो देश में सर्वाधिक है।
मुख्यमंत्री निवास में हरेली पर्व पर रंगारंग आयोजन हुआ। पूरे परिसर को ग्रामीण परिवेश में सजाया गया था। छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के पहले पर्व “हरेली” पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अपनी धर्मपत्नि कौशल्या देवी साय के साथ गौरी-गणेश पूजा कर भगवान शिव का अभिषेक किया। मुख्यमंत्री ने कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले नांगर, रापा, कुदाल व कृषि यंत्रों की विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की ख़ुशहाली एवं सुख-समृद्धि की कामना की।
मुख्यमंत्री साय ने इस अवसर पर कृषि विभाग द्वारा वहां लगायी गयी उन्नत कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया और अनुदान पर 23 किसानों को ट्रेक्टर और हार्वेस्टर की चाबी और अन्य कृषि उपकरण प्रदान किए।
इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, कृषि मंत्री रामविचार नेताम, सांसद बृजमोहन अग्रवाल, विधायक किरण देव, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी कौशल्या देवी साय ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया।
साय पूरी प्रतिबद्धता और सच्चे मन से
प्रदेशवासियों की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं, फलस्वरूप ईश्वर का आशीर्वाद भी मिल रहा है। प्रदेश में अच्छी बारिश हो रही है। उन्होंने कहा कि बीते छह माह में साय के नेतृत्व में किसानों के कल्याण के लिए बडे़ काम किए गए है, जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। इस अवसर पर मंत्री टंक राम वर्मा, विधायक लता उसेंडी, मोती लाल साहू, अनुज शर्मा, संपत अग्रवाल, गजेन्द्र यादव, खुशवंत साहेब अन्य जनप्रतिनिधि एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री निवास में राउत नाचा और गेड़ी धूम
छत्तीसगढ़ी संगीत, लोकनृत्य, पारंपरिक गड़वा बाजा, राउत नाचा, गेड़ी नृत्य, रहचुली और विभिन्न छत्तीसगढ़ी पकवानों और व्यंजनों के आनंद के साथ मुख्यमंत्री निवास में मौजूद लोग उत्साह के साथ हरेली में शामिल हुए। इस अवसर पर लोक कलाकारों ने राउत नाचा, करमा नृत्य, बस्तरिया नृत्य और गेड़ी चढ़कर नृत्य की प्रस्तुति दी। राउत नाचा के कलाकारों के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ी पारंपरिक वेशभूषा धारण कर कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।
मेहमानों के लिए बना छत्तीसगढ़ी पकवान
हरेली त्यौहार के मौके पर मुख्यमंत्री निवास छत्तीसगढ़ व्यंजनों से महक उठा। हरेली तिहार में आने वाले मेहमानों के लिए खास तौर पर ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अनरसा, खाजा, करी लड्डू, मुठिया, गुलगुला भजिया, चीला-फरा, बरा जैसे स्वादिष्ट पकवान बनाए गए थे, जिसका मेहमानों ने लुत्फ उठाया।
काठा – इस चित्र में सबसे बाएं दो गोलनुमा लकड़ी की संरचना दिख रही है, जिसे काठा कहा जाता है। पुराने समय में जब गांवों में धान मापन के लिए तौल कांटा-बाट का प्रचलन नही था, तब काठा से धान का मापा जाता था। सामान्यतः एक काठा में चार किलो धान आता है। काठा में ही नाप कर पहले मजदूरी के रूप में धान का भुगतान किया जाता था।
खुमरी – सिर के लिए छाया प्रदान करने के लिए बांस की पतली-पतली खपच्ची से बनी, गुलाबी रंग से रंगी और कौड़ियों से सजी घेरेदार संरचना खुमरी कहलाती है। यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहें अपने सिर पर धारण करते हैं। जिससे धूप और बारिश से बचाव होता है। पहले चरवाहा कमरा (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते है। कमरा जो कि जूट के रेशे से बने ब्लैंकेट नुमा मोटा वस्त्र होता था, जो कि बारिश बचने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
कांसी की डोरी – खुमरी के बगल में डोरी का गोलनुमा गुच्छा कांसी पौधे के तने से बनी डोरी है। यह पहले चारपाई या खटिया में उपयोग होने वाले निवार के रूप में प्रयोग किया जाता है। डोरी बनाने की प्रक्रिया को डोरी आंटना कहा जाता है। बरसात के शुरुआती मौसम के बाद जब खेत के मेड़ों में कांसी पौधे उग आते है, तब उसके तने को काटकर डोरी बनाई जाती है, जो कि चारपाई बुनने के काम आती है।
झांपी – चित्र के सबसे दाएं तरफ ढक्कन युक्त लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना झाँपी कहलाती है। यह पुराने जमाने में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता था। यह खासकर विवाह के अवसर पर बारात जाने के समय दूल्हे का कपड़ा, श्रृंगार समान, पकवान आदि सामग्रियां रखने का काम आता था। यह बांस की लकड़ी से बनी मजबूत संरचना होती थी, जो कई वर्षों तक खराब या नष्ट नहीं होती है।
कलारी – बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर कलारी बनायी जाती है। इसका उपयोग धान मिंजाई के दौरान धान को उलटने-पलटने में होता है।