नई दिल्ली, रायपुर। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में पेड़ कटाई को लेकर हर जगह जमकर विरोध हो रहा है। इसी बिच हजारों पेड़ों की कटाई के बाद केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया है कि वे अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटेंगे। यह वादा न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच के सामने किया गया।
यह बेंच हसदेव में कोयला खदानों के लिए वन भूमि आवंटन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है। बताया जा रहा है कि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद-ICFRE की अध्ययन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। ICFRE ने दो भागों की इस रिपोर्ट में हसदेव अरण्य की वन पारिस्थितिकी और खनन का उसपर प्रभाव का अध्ययन किया है।
सेंट्रल गोवेर्मेंट की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह रिपोर्ट पेश करने के लिए कुछ और समय देने की मांग की। उन्होंने कहा, इसकी अगली तारीख दिवाली की छुट्टी के बाद और संभव हो तो 13 नवंबर के बाद दी जाए। याचिकाकर्ताओं में से सुदीप श्रीवास्तव की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता नेहा राठी ने कहा, सुनवाई आगे बढ़ाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन तब तक केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की ओर से आगे किसी पेड़ की कटाई नहीं होनी चाहिए। उसके बाद केंद्र सरकार और राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की ओर से कहा गया, अगली सुनवाई तक हसदेव में किसी पेड़ की कटाई नहीं करेंगे। इसके साथ ही न्यायालय ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने का निवेदन स्वीकार कर लिया।
क्या है सुदीप श्रीवास्तव की याचिका में ?
2011 में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक में पहले चरण की अनुमति केंद्रीय वन मंत्रालय ने दी थी। केंद्र सरकार की ही वन सलाहकार समिति ने जैव विविधता पर खतरा बताते हुए आवंटन को निरस्त करने की सिफारिश की थी। उसके बाद भी 2012 में अंतिम चरण का क्लियरेंस जारी हो गया। 2013 में इस ब्लॉक में खनन भी शुरू हो गया। इसके खिलाफ छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत की। ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्य जीव संस्थान से अध्ययन कराने का सलाह दिया था। इसके बाद भी केते एक्सटेंसन को भी अनुमति दे दी। सुदीप श्रीवास्तव ने वन भूमि आवंटन को चुनौती दी है।
3 याचिकाएं सुन रहा है सुप्रीम कोर्ट
एक और याचिका अंबिकापुर के अधिवक्ता डी.के. सोनी ने दायर की है। उन्होंने माइन डेवलॅपर एंड ऑपरेटर के कांसेप्ट पर सवाल उठाया है। याचिका में कहा गया है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने अडानी समूह के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर खदानों को निजी कंपनी के हवाले कर दिया है। इस तरह के अनुबंध को सर्वोच्च न्यायालय 2014 में पहले ही अवैध घोषित कर चुका है। इसी की वजह से राजस्थान को मिला कोल ब्लॉक रद्द भी हुआ था। इस मामले में एक और याचिका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से जयनंदन पोर्ते ने दायर की है।
43 हेक्टेयर जंगल में कट चुके है सैकड़ों साल पुराने पेड़
नीय प्रशासन और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने 27 सितम्बर को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में वनों की ताजी कटाई शुरू करा दी थी। स्थानीय ग्रामीणों को हिरासत में ले लिया गया था। दो दिन पहले तक पेण्ड्रामार के पास 43 हेक्टेयर क्षेत्र में साल के सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को काटकर जमीन समतल की जा चुकी थी। महाराष्ट्र सरकार ने ठीक ऐसा ही काम आरे जंगल की कटाई में किया था। सर्वोच्च न्यायालय में कटाई पर रोक की याचिका पर सुनवाई हुई तो सरकार ने कहा, जितना पेड़ काटना था उतना तो काट चुके हैं। अब वहां पर शेड बनाने की अनुमति दे दी जाए।