बिलासपुर। पति-पत्नी के बीच विवाद ने मासूम बच्चे को कटघरे में खड़ा कर दिया है। दोनों में आपसी विवाद के बीच पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने खून पर ही सवाल उठाते हुए बच्चे के डीएनए टेस्ट की मांग कर दी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी है। मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी के सिंगल बेंच में हुई।

दरअसल, दुर्ग में रहने वाले युवक की शादी बालोद में रहने वाली युवती के साथ जनवरी 2024 में दल्लीराजहरा में हुई थी। उनका चार माह का बेटा है। इस बीच दोनों में विवाद शुरू हुआ और मामला कोर्ट पहुंच गया। पति ने फैमिली कोर्ट में मामला दायर करते हुए चार महीने के मासूम के रिश्ते पर सवाल उठाते हुए डीएनए टेस्ट की मांग की।
माामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज करते हुए पिता को यह हिदायत भी दी कि बच्चे का लालन पालन एक पिता की तरह करें और घर परिवार के बीच सामंजस्य बनाए रखें। इधर फैमिली कोर्ट के फैसले को पिता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और चार महीने के मासूम का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की।
मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ठोस प्रकरण नहीं होने पर हिन्दू रीति रिवाज से हुए विवाह के दौरान जन्म लिए बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता है। DNA टेस्ट का आदेश तभी दिया जाना चाहिए जब साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत पर्याप्त सबूत हों।