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दंतेवाड़ा: जिले में गीदम नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने जा रहा है। इसकी वजह है कि यहां दो भाई आमने सामने चुनावी दंगल में खड़े हैं। एक कांग्रेस प्रत्याशी है तो दूसरा भाजपा की तरफ से चुनाव मैदान में खड़ा है। गीदम नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे दोनों भाइयों का नाम रविश सुराना और रजनीश सुराना है। दोनों चचेरे भाई है। रविश सुराना कांग्रेस से तो रजनीश सुरना भाजपा से भाग्य आजमा रहे हैं। दोनों भाई बचपन में साथ मिलकर कभी साइकिल रेस तो कभी रेसिंग कर हार जीत का लड़ाई लड़ते थे। अब चुनाव में दोनों भाई हार जीत का दांव लगा रहे हैं।
दरअसल, गीदम नगर पंचायत सीट जिले की सबसे हाई प्रोफाइल सीट है। क्योंकि, भाजपा सिटिंग MLA चैतराम अटामी, भाजपा जिला अध्यक्ष संतोष गुप्ता, महिला मोर्चा जिला अध्यक्ष ममता गुप्ता, भाजपा जिला अध्यक्ष संतोष गुप्ता, पूर्व जिला अध्यक्ष नवीन विश्वकर्मा, विजय तिवारी जैसे दिग्गज नेताओं का गढ़ है।
वहीं कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष विमल सुराना, शकील रिजवी जैसे बड़े लीडर्स भी यहीं रहते हैं। ऐसे में रविश और रजनीश के साथ-साथ इन नेताओं की भी साख दांव पर लगी है।
रजनीश सुराना का फैमिली बैकग्राउंड राजनीति से जुड़ा हुआ है। उनकी मां स्व. राधा सुराना वार्ड पार्षद थीं। बड़े भाई मनीष सुराना जिला पंचायत उपाध्यक्ष रहे हैं। जबकि, भाभी हारम पारा की सरपंच हैं। वहीं रजनीश खुद गीदम व्यापारी संघ के अध्यक्ष रहे हैं। अब नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए खड़े हुए हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी रविश सुराना अध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय चुनाव लड़ चुके थे। इन्होंने कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को जोरदार टक्कर दी थी। वे चुनाव तो हार गए थे लेकिन उन्होंने कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों का समीकरण बिगाड़ दिया था। वे तीसरे पोजिशन पर थे। वहीं पिछले चुनाव में कांग्रेस ने उनकी पत्नी साक्षी रविश सुराना को चुनावी मैदान में उतारा था।
पार्षदों का समर्थन पाकर साक्षी अध्यक्ष बनीं। वहीं इस बार सामान्य सीट आई तो कांग्रेस ने रविश पर भरोसा जताया। वे दोबारा भाग्य आजमाने चुनावी अखाड़े में उतर गए हैं। इनका सीधा मुकाबला खुद के भाई से है। हालांकि, रविश को चुनाव का अनुभव भी है।
गीदम नगर पंचायत क्षेत्र में सुराना फैमिली और समाज के वोटर्स काफी अधिक हैं। वहीं एक ही परिवार से अलग-अलग पार्टी से दो कैंडिडेट खड़े हो गए हैं। ऐसे में सामाजिक और पारिवारिक वोटर्स के वोट भी बटेंगे। परिवार और समाज के वोटर्स के साथ ही ये अब अन्य वर्गों के वोटर्स को साधने में लगे हुए हैं।