धमधा। जिला पंचायत चुनाव में इन दिनों सबसे ज्यादा सरगर्मी क्रमांक 02 में है, जहां धमधा से लेकर बोरी तक के 44 गांवों में चुनावी पारा चढ़ा हुआ है। वहां भाजपा और कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के बीच कड़ा मुकाबला बताया जा रहा है, लेकिन उनकी नींद निर्दलीय प्रत्याशियों ने उड़ा दी है। दलों की नाराजगी चरम पर है, जिसके कारण भारी भितरघात की स्थिति बन रही है, यही कारण है कि निर्दलीय प्रत्याशियों की चर्चा जोरों पर है।
जिला पंचायत दुर्ग के अधीन क्रमांक 02 में धमधा से लेकर बोरी तक 44 गांव हैं। जहां लगभग 50 हजार मतदाता हैं। पिछले चुनावों में देखें तो यहां से देवीप्रसाद वर्मा, श्वेता अग्रवाल, हेमलाल वर्मा, संतोष राणा, माया बेलचंदन और शमशीर अहमद कुरैशी जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। इस बार यहां से सात प्रत्याशी चुनावी ताल ठोंक रहे हैं। जिसमें अवधराम पटेल टेकापार (बोरी), दानेश्वर साहू दालू परसबोड़ (बरहापुर), ईश्वरी कुमार निर्मलकर दानीकोकड़ी (धमधा), लुमेश्वर सिंह पटेल दनिया (बोरी), मनीष कुमार साहू मड़ियापार, निकलेश साहू भाठापारा(अहिवारा) और सत्यम कुमार उमरे तुमाकला शामिल हैं।

इस बार चुनाव में पंच, सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के लिए एक मतदाता 4 वोट डालेंगे। हर गांव में सरपंच के पद को लेकर खींचतान के बीच जिला पंचायत सदस्य का चुनाव रोचक हो गया है। चूंकि यह चुनाव राष्ट्रीय पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़ा जा रहा है, इसिलए कमल या पंजा चुनाव चिन्ह नहीं हैं। पार्टी समर्थित प्रत्याशियों को निर्दलीय प्रत्याशी की तरह अपना नाम के साथ चुनाव चिन्ह समझाने में समस्या हो रही है। वैसे तो मतदाताओँ में जिला पंचायत सदस्य के चुनाव को लेकर कुछ खास रूझान नहीं है, लेकिन इस बार चुनाव में कुछ मुद्दे हैं, जिनके कारण मतदाताओं का ध्यान खींच रहा है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता रविंद्र चौबे के समर्थन पर दानेश्वर साहू दालू चुनाव मैदान में हैं। साजा विधानसभा से करारी हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ है, फिर भी दालू साहू को अपने क्षेत्र में अच्छा समर्थन मिल रहा है। उनके निवास वाले गांव के आसपास उनकी अच्छी पकड़ बताई जा रही है। उनकी कमजोरी यह है कि पिछली सरकार में उन्हें जीव जन्तु कल्याण बोर्ड में कृषि मंत्री चौबे ने सदस्य बनवाया था, उसमें रहते हुए वे कार्यकर्ताओं से दूर हो गए। पार्टी के भीतर गुटबाजी के कारण धमधा नगर पंचायत का बड़ा धड़ा उनके पक्ष में काम नहीं कर रहा है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य शमशीर अहमद कुरैशी ने प्रचार से किनारा कर लिया है। वे प्रचार में नहीं आ रहे हैं।
भाजपा समर्थित प्रत्याशी मनीष साहू (गाड़ी छाप) मड़ियापार से हैं, उनके सामने संकट यह है कि वे अपना वोट खुद को नहीं दे पाएंगे। विपक्ष ने इसी को मुद्दा बना दिया है। बाहरी प्रत्याशी के नाम से भाजपा कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। वैसे जिस तरह भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है, उससे मनीष साहू के हौसले बढ़े हुए हैं। वे मड़ियापार में होने वाले बैल दौड़ का जिक्र करते हुए वोट मांग रहे हैं। भाजपा में नाराजगी इतना अधिक है कि खुद चुनाव संचालक भी मनीष के साथ एक दिन भी प्रचार के लिए नहीं गए हैं। दरअसल पूर्व मंडल अध्यक्ष महत्व नहीं मिलने से नाराज चल रहे हैं। जबकि वे काबिल, योग्य और कुशल रणनतिकार माने जाते हैं। कार्यकर्ता मनीष को पहचान नहीं रहे बल्कि उनके भाई के कामों से आधार पर मनीष अपनी पहचान बनाने कब कोशिश कर रहे हैं।
तीसरे प्रत्याशी ईश्वरी कुमार निर्मलकर हैं, जिन्हें पतंग छाप मिला हुआ है। वे पिछले चुनाव में जनपद पंचायत सदस्य का चुनाव 3800 मतों से जीते थे, जो नौ गांव के क्षेत्र तक सीमित था। पांच साल अपनी सक्रियता और व्यवहार के दम पर वे वोट मांग रहे हैं। उनकी खास बात यह है कि उन्होंने पहले जनता से सर्वे करके प्रत्याशी बनने के लिए राय मांगी और अब वे प्रतिदिन प्रश्नोत्तरी के जरिए ऐसे सवाल पूछ रहे हैं, जो स्थानीय लोगों से जुड़े मुद्दे हैं। उदाहरण के लिए धमधा के टमाटर किसानों को उचित कीमत नहीं मिलने से लेकर दानीकोकड़ी को चूनापत्थर खदान के लिए उजाड़ने के प्रस्ताव का मुद्दा। वहीं बसनी गांव में शराब फैक्टरी लगाए जाने का विरोध और 1952 में विधानसभा रहे बोरी क्षेत्र की उपेक्षा का मुद्दा लोगों को अपने साथ जोड़ रहा है। हालांकि कार्यकर्ताओं की कमी और संगीत कलाकारों के नहीं होने के कारण उनके साथ भीड़ नहीं दिख रही है, जैसा राष्ट्रीय समर्थित पार्टी के साथ दिख रही है।
इसी तरह दनिया से लुमेश्वर पटेल प्रत्याशी है, छाता चुनाव चिन्ह मिला हुआ है। वे जनपद पंचायत के सदस्य हैं और लोधी समाज में उनकी अच्छी पैठ बताई जा रही है। इस क्षेत्र में लोधी समाज के मतदाता निर्णायक हैं। हालांकि साहू समाज की संख्या भी कम नहीं है, लेकिन भाजपा-कांग्रेस दोनों ने साहू प्रत्याशी खड़े किये हैं, जिनसे उनके वोट बंटने का अंदेशा है। लोधी समाज से अवध राम पटेल टेकापार ( दो पत्ती छाप) से ताल ठोंक रहे हैं। वे भी लोधी समाज से होने का दावा कर रहे हैं। इसी तरह महज 23 साल के प्रत्याशी सत्यम कुमार उमरे बिजली बल्ब छाप पर मैदान में हैं। वे युवा होने के नाम पर वोट मांग रहे हैं, लोगों के बीच बच्चों को निशुल्क कंप्यूटर शिक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। अहिवारा क्षेत्र के निकलेश साहू ने भी पर्चा दाखिल किया है, जिन्हें फावड़ा छाप मिला है। उनकी उपस्थिति साहू बाहुल्य गांव में नजर आ रही है, हालांकि दूसरे क्षेत्र से होने के कारण उन्हें पहचान के संकट से जूझना पड़ रहा है।
कुल मिलाकर देखें तो जिला पंचायत के इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने भाजपा-कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों को परेशान कर दिया है। इसका एक और कारण है कि बागी नेताओं को कांग्रेस ने कोई नोटिस नहीं दी है और न ही उनके निलंबन की कार्रवाई की गई है। इधर भाजपा में विधायक ईश्वर साहू टिकट वितरण में उनकी पसंद नहीं होने के कारण अलग-थलग पड़े दिखाई दे रहे हैं। मनीष साहू पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नहीं साध पा रहे हैं। लिहाजा निर्दलीय प्रत्याशियों की बांछें खिली हुई हैं और वे डोर-टू-डोर संपर्क करके अपने पक्ष को मजबूत करने में लगे हुए हैं। यहां 23 फरवरी को मतदान होंगे, मतदाताओं की खामोशी स्पष्ट संकेत नहीं दे रही है, लेकिन इस चुनाव में उठने वाले मुद्दे कहीं न कहीं मतदाताओं में चर्चा का विषय है। यह चर्चा कितनी सफल हो पाती है या मतदाता राष्ट्रीय पार्टियों पर ही भरोसा करते हैं, इसका पता 23 के बाद ही लगेगा।