अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे से पहले नक्सली बैकफुट पर… केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय ने शांति वार्ता का दिया प्रस्ताव, गृहमंत्री के बस्तर दौरे से पहले जारी किया पर्चा, कहा- “पिछले 15 महीनों में हमारे 400 से अधिक साथी मारे गए”

बस्तर। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बस्तर दौरे से पहले नक्सलियों ने शांति वार्ता के लिए अपना रुख स्पष्ट किया है। नक्सली संगठन के केंद्रीय समिति के प्रवक्ता, अभय ने एक पर्चा जारी करते हुए कहा है कि अगर केंद्र और राज्य सरकार नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन रोक देती है, तो वे शांति वार्ता के लिए तैयार हैं। यह पर्चा तेलगु भाषा में जारी किया गया था, जिसमें नक्सलियों ने पिछले 15 महीनों में हुए अपने नुकसान का उल्लेख किया है। पर्चे में अभय ने कहा कि, 24 मार्च को हैदराबाद में हुई एक बैठक में शांति वार्ता की बात हुई थी। उन्होंने कहा कि अगर सरकार नक्सल विरोधी ऑपरेशन को बंद करती है, तो वे बिना किसी शर्त के शांति वार्ता करने के लिए तैयार हैं। इस दौरान यह भी कहा गया कि, छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा ने शांति वार्ता के लिए पहल की थी।

अभय के मुताबिक, पिछले 15 महीनों में नक्सली समूह के 400 से अधिक सदस्य मारे गए हैं और कई अन्य गिरफ्तार हुए हैं। पर्चे में नक्सलियों ने सरकार से मांग की है कि वे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे क्षेत्रों में सैन्य ऑपरेशनों को रोकें, और नए सैन्य कैंपों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाएं। इसके बाद, वे युद्धविराम की घोषणा करने के लिए तैयार हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही मार्च 2026 तक पूरे देश से नक्सलवाद के खात्मे की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि यदि नक्सली हिंसा जारी रखते हैं, तो सरकार के जवान उनका मुकाबला करेंगे। इस डेडलाइन के बाद से बस्तर में नक्सल विरोधी ऑपरेशन तेज कर दिए गए हैं।

नक्सलियों ने इस संघर्ष को अपने संगठन की ‘शांतिचरला समिति’ द्वारा तेज करने की घोषणा की है। उन्होंने अपनी प्रमुख मांगों में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा, खदान परियोजनाओं की बंदी और शोषण पर रोक लगाने की बात की है। उनका कहना है कि यह संघर्ष केवल माओवादियों का नहीं, बल्कि सभी उत्पीड़ित वर्गों का है, और वे इस संघर्ष में प्रगतिशील ताकतों से सहयोग की अपील करते हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस प्रस्ताव पर क्या प्रतिक्रिया देती है, और क्या शांति वार्ता के लिए कोई रास्ता निकलता है या नहीं। बस्तर और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल विरोधी ऑपरेशन और शांति वार्ता के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण मामला साबित हो सकता है।

पर्चे में लिखा है कि, जब हमारे दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सदस्य और माओवाद संगठन के प्रतिनिधि विकल्प ने शांति वार्ता के लिए अपनी शर्त रखी थी कि जवानों को कैंप तक ही रखा जाए। ऑपरेशन को बंद किया जाए। जिसके बाद बातचीत करेंगे। इन शर्तों का जवाब दिए बगैर लगातार ऑपरेशन चलाए गए। पिछले 15 महीने में हमारे 400 से अधिक नेता, कमांडर, PLGA के कई स्तर के लड़ाके मारे गए।

सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया है। ऐसे में अब जनता के हित में हम सरकार से शांति वार्ता के लिए तैयार हैं। नक्सली लीडर अभय ने कहा कि, इस मौके पर हम केंद्र और राज्य सरकार के सामने शांति वार्ता के लिए सकारात्मक माहौल बनाने का प्रस्ताव रख रहे हैं। इसके लिए हमारा प्रस्ताव है कि केंद्र और राज्य सरकारें छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र (गढ़चिरौली), ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में ऑपरेशन के नाम पर हत्याओं और नरसंहार को रोकें। नए सशस्त्र बलों के कैंप की स्थापना रोकें। अगर केंद्र और राज्य सरकारें इन प्रस्तावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देती हैं, तो हम तुरंत युद्धविराम की घोषणा कर देंगे।

इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अगस्त 2024 और दिसंबर 2024 को छत्तीसगढ़ के रायपुर और जगदलपुर आए थे। वे यहां अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग मंच से नक्सलियों को चेताते हुए कहा था कि हथियार डाल दों। हिंसा करोगे तो हमारे जवान निपटेंगे। वहीं, उन्होंने एक डेडलाइन भी जारी की थी कि 31 मार्च 2026 तक पूरे देश से नक्सलवाद का खात्मा कर दिया जाएगा। शाह की डेडलाइन जारी करने के बाद से बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन काफी तेज हो गए हैं।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के केंद्रीय समिति प्रवक्ता अभय ने पात्र में लिखा कि…

“मध्यभारत में बढ़ते युद्ध और युवा माओवादी कैडर के उभार’ को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने विशेष अभियान के तहत “शांतिचरला जनयुद्ध” को आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। 24 फरवरी को हैदराबाद में शांतिचरला कमेटी के केंद्रीय टेबल सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें इस संघर्ष को मजबूती देने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस संघर्ष में हम सभी से सहयोग की अपील करते हैं।”

“2024 के आम चुनावों के दौरान, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने “कॉर्प-5” योजना के माध्यम से ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों में दमनकारी सैन्य अभियानों को और तेज कर दिया। इसके तहत कई राज्यों में अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ा दी गई, जिससे आम जनता को काफी नुकसान हुआ। आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों और उनकी आजीविका पर हमले किए गए।”

“केंद्र और राज्य सरकारें कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के इशारे पर कार्य कर रही हैं। इस दमन के खिलाफ शांतिचरला समिति आदिवासियों, किसानों, श्रमिकों, छात्रों और महिलाओं को संगठित करने का कार्य कर रही है। हमारा लक्ष्य पूंजीवादी लूट और सरकारी दमन के खिलाफ जनता को लामबंद करना है।”

माओवादियों के प्रमुख मांगें:
• कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा आदिवासी क्षेत्रों की लूट बंद की जाए।
• जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के अधिकार को मान्यता दी जाए।
• शोषणकारी खदान परियोजनाओं को तुरंत बंद किया जाए।
• राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गैरकानूनी गिरफ्तारियों पर रोक लगाई जाए।