भिलाई। साहित्य, संस्कृति तथा भाषा के अप्रतिम विद्वान् एवं समीक्षक, इस्पातनगरी, लघु भारत, भिलाई, छत्तीसगढ़ के निवासी -आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा, संस्कृत साहित्य, हिन्दी साहित्य एवं भाषाविज्ञान आदि तीन विषयों में उच्चश्रेणी में एम. ए. एवं समर्पित भाषाभक्त हैं। सांस्कृतिक समन्वय और अनेकता में एकता के प्रबल पक्षधर आचार्य डॉ. शर्मा ने बौध्दकाव्य पद्यचूडामणि (सिध्दार्थचरितम्) पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

सार्वजनिक जीवन में धर्म के जिज्ञासु, शुचिता और अनुशासन के आकांक्षी तथा राजनीति में विकृतियों के विरोधी आचार्य डॉ. महेश को “धर्म और राजनीति” जैसे ज्वलन्त विषय पर उक्त विश्वविद्यालय से सर्वोच्च शोध उपाधि डी.लिट्. से सम्मानित किया गया। वे छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम और अभी तक के एक मात्र संस्कृत डी.लिट्. अलंकृत व्यक्तित्व हैं। डॉ. शर्मा उच्चशिक्षा में वर्षों कुशल एवं सफल प्रोफेसर एवं प्रिंसीपल भी रहे हैं। उनका चयन प्रशासनिक सेवाओं के लिये भी हुआ किन्तु उन्होंने शिक्षकीय सेवाओं को ही श्रेयस्कर माना और स्वीकार किया।
विगत चार-पाँच दशकों से अधिक समय से धर्म – संस्कृति, उच्चशिक्षा एवं अनुसन्धान में लगातार महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। — सिध्दार्थचरित का सांस्कृतिक अध्ययन’, ‘संस्कृति के चार सोपान’, ‘संस्कृत सुरभि’, ‘मित्रलाभ’, ‘धर्म और राजनीति’, ‘छत्तीसगढ़ में संस्कृत’, ‘प्रेरणा प्रदीप’, ‘गागर में सागर’, ‘साहित्य और समाज’, एवं ‘सार्थकशुकनासोपदेश’ आदि अनेक शोधग्रन्थ, सन्दर्भग्रन्थ, पाठ्यपुस्तकें तथा व्याख्यापरक उनकी पुस्तकों के सम्मान सहित प्रकाशन, प्रादेशिक राजधानी रायपुर तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से हुये हैं।
‘साहित्यसरिता’ आदि आपकी कुछ अन्य कृतियाँ भी प्रकाशन की प्रक्रिया में हैं। जीवन के सातवें दशक की ओर अग्रसर डॉ. शर्मा के 500 से अधिक लेख, आलेख, शोधालेख एवं ललितलेख भी राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ससम्मान प्रकाशित हुये हैं। वे अखिल भारतीय स्तर के शोध, सांस्कृतिक एवं देशभक्ति पूर्ण भ्रमण के उपरान्त तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से सिडनी, मेलबोर्न, लन्दन ऑक्सफोर्ड, ट्यूरिन, बेनिस, बॉन, ड्यूजलड्रॉफ, फ्रेंकफर्ट, ब्रूसेल्स, सिंगापोर, ढाका तथा कोलम्बो आदि वैदेशिक महानगरों का भी सफल सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक भ्रमण कर चुके हैं।
ऑस्ट्रेलिया में सम्पन्न नवम विश्व संस्कृत सम्मेलन के शुभारम्भ के अवसर पर दुनिया के 165 देशों के संस्कृत विद्वानों एवं भारतीय संस्कृतिविदों के समक्ष वैदिक शान्तिपाठ, ग्रेट ब्रिटेन में प्रभु श्रीजगन्नाथ जी पर हिन्दी में व्याख्यान, इटली में कालिदास की पर्यावरण चेतना पर शोधालेख, जर्मनी में शिवचरित्र पर प्रवचन एवं बैंग्लोर के दशम विश्व संस्कृत सम्मेलन में धर्मशास्त्र सत्र का अध्यक्षीय वक्तव्य आदि प्रस्तुत करके प्रोफेसर डॉ. महेश ने विश्वख्याति अर्जित की।
प्राय: चार दशकों से अधिक के अपने राष्ट्रीय, सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक जीवन में वे लगभग 500 क्षेत्रीय, राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर मुख्यातिथ्य, अध्यक्षीय, संयोजकीय तथा विषय विशेषज्ञ सम्बन्धी वक्तव्यों की छाप छोड़ चुके हैं। अनेकानेक संस्थाओं के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् के माननीय सदस्य के नाते संस्कृत जगत् को आपने अनेक वर्षों तक मार्गदर्शन दिया। अध्ययन, अध्यापन, अनुसन्धान तथा लेखन से जुड़े आचार्य डॉ. महेशचन्द्र शर्मा को अनेकानेक सम्मानों के अलावा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा संस्कृत भाषा की सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय तथा अतिविशिष्ट योगदान हेतु दिये जाने वाले सर्वोच्च राज्य अलंकरण, शिखर सम्मान से भी अभिनन्दित किया जा चुका है।
उन्हें आउट स्टैण्डिंग यंग इण्डियन, राष्ट्राभाषा अलंकरण, सृजन शिक्षक सम्मान, भिलाई के नवरत्न एवं अस्मिता शंखनाद पुरस्कार आदि से भी नवाजा गया है। महर्षि अरविन्द घोष आश्रम पाण्डिचेरी द्वारा आचार्य डॉ. शर्मा को प्राचार्य के रूप में ‘सर्टिफिकेट ऑफ एचीवमेण्ट’ एवं ‘ऑरोपथ ग्लोबल अवार्ड’ 2019 से भी सम्मानित किया गया हैं। कुशल मंचोद्घोषक, प्रवीण प्रवक्ता, शोधकर्त्ता, एवं स्तम्भलेखक आचार्य डॉ. महेश इलेक्ट्रॉनिक और प्रिण्ट मीडिया के माध्यम से भी अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित रहे है।
महविद्यालयीक प्राचार्य रहते हुये भी आपने कक्षायें ली। आपके इस पद के कार्यकाल में कॉलेजों में मेरिट और जॉबप्लेसमेण्ट, कैरियरकॉउंसिलिंग के लिये ‘उड़ान’, लोगों के सहयोग और सहायता के लिये ‘नेकी की दीवार’ और परीक्षा के समय परीक्षार्थियों का मनोबल बढ़ाने के लिये ‘गुडलक चॉकलेट’ आदि कार्यक्रम काफी लोकप्रिय रहे।