दुर्ग। दुर्ग शहर के सीनियर और लोकप्रिय विधायक अरुण वोरा का आज जन्म दिन है। जनवादी राजनीतिक परम्परा के अग्रदूत दुर्ग विधायक अरुण वोरा तीन दशकों की सुदीर्घ सियासी यात्रा पूर्ण कर चुके है। 22 नवम्बर को वे अपना जन्मदिन मना रहे है। राजनांदगांव में जन्म लिए अरुण वोरा का जीवन राजनीतिक ककहरो के बीच गुजरा। युवावस्था में वे विधायक बन चुके थे। 1993 में पहली बार दुर्ग विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित होने के बाद अनवरत जनसेवा में जुटे हुए हैं।

वंचित, शोषित व सर्वहारा वर्ग की लगातार आवाज बुलंद करने वाले विधायक अरुण वोरा अपने पिता स्व मोतीलाल वोरा की समृद्ध राजनीतिक विरासत को बिना महत्वकांक्षा के जिस तरह आगे बढ़ाया, वैसे उदाहरण बिरले हैं। शहर की नब्ज की धड़कन को उन्होंने जिस शिद्दत से छुआ, उसने ही उन्हें एक मजबूत जनाधार वाला नेता बनाया। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर से शहर की राजनीति उनके इर्दगिर्द घूमते रही है।


बने-बुनाये आभामंडल की परिपाटी के परे हटकर गरीब- गुरबत की सेवा में उन्होंने कभी कमी नही की। आम आदमी के उम्मीदों की उन्होनें सियासी गलियों में मर्यादा बनाये रखी। कांग्रेस की जनोन्मुखी रीति-नीति का बोध जमीनी स्तर पर कराने में विधायक अरुण वोरा जैसे नेता अहम भूमिका निभाते हैं। वे चाहे पद में रहे, या न रहे जनसापेक्ष मानव सेवा में अग्रणी ही रहे। आज जब राजनीति से जुड़े लोगों को समाज आशंका की दृष्टि से देखने लगा है, अरुण वोरा जैसे नेता सियासी गलियों में उम्मीद की नवकिरण नजर आते हैं। वे समझते है कि आमजनों का विश्वास किसी राजनेता की सबसे बड़ी पूंजी होती है। इस विश्वास को कायम रखने अपना दुख-दर्द, तकलीफ भुल जाते हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ ही अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले दुर्ग विधायक अरुण वोरा आज भी कंधे से कन्धा मिलाकर उनका साथ निभा रहे हैं। जनता की सेवा में अपना जीवन होम कर देने वाले विधायक अरुण वोरा उस मूल्यजनित राजनीतिक विरासत के पृष्टपोषक बने हुए हैं, जिनकी शुरुआत स्व मोतीलाल वोरा ने की थी। इस विरासत को संजोए रखना, आगे बढ़ाना इतना आसान भी नही रहा। स्वहित को भुलकर व्यापक जनहित को अपना जीवन का ध्येय बनाने की राह फूलों का सेज न था।

किंतु हर मुसीबतों का डटकर सामना करते हुए इस मुकाम तक पहुंचे अरुण वोरा तीन लाख से अधिक दुर्गवासियों के रहनुमा बने हुए हैं। जनसेवा की यह अविरल धारा सतत बहती रहे। उनके जन्मदिन पर शहर की जनता यही कामना करती है। पद आते-जाते रहते हैं। पर सेवा का जज्बा सदा अक्षुण्ण बना रहे, इसके लिए हृदय में नम्रता, संवेदनशीलता व सहकारी भावना कायम रहना चाहिए। विधायक अरुण वोरा को यह गुण उनके पिता मोतीलाल वोरा से संस्कार में मिला है। उनके खुद के शब्दों में जनप्रतिनिधियों को सदैव आम जनों की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए क्षेत्र की जनता के लिए सहज सुलभ उपलब्ध रहते हुए उनके हर छोटी बड़ी समस्या का निदान करने का प्रयास करना यही सबसे बड़ा कर्तव्य है।


