- भरत ने गरीबी से निकल कर तय किया IIT धनबाद से लेकर ISRO तक का सफर
- नक्सल प्रभावित गांव से निकलकर निशांत ने तय किया ISRO तक का सफर

भिलाई। भारत के मिशन मून चंद्रयान 3 की सफलता का जश्न पुरे देश में मनाया जा रहा है। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में उतरने वाला पहला देश बन गया है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के भिलाई और अंबिकापुर शहर के होनहार बेटों ने भी इस मिशन में अपना सहयोग दिया है। भिलाई तीन चरोदा क्षेत्र में रहने वाले भरत कुमार ने IIT धनबाद से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद इसरो ज्वाइन किया। इसके बाद उन्होंने चंद्रयान 2 और चंद्रयान तीन दोनों मिशन में अपना सहयोग दिया है। वहीं अंबिकापुर के रहने वाले निशांत सिंह भी इसरो के चंद्रयान-3 टीम का हिस्सा थे। इस मौके पर निशांत का परिवार गर्व और खुशी से भर गया है।

भरत कुमार के बारें में जानिए
भरत कुमार के पिता के चंद्रमोहन का कहना है कि भरत बचपन से ही काफी तेज था। सुबह 4 बजे पढ़ाई के लिए उठ जाता है। तीसरी से कक्षा से 12वीं तक उसने केंद्रीय स्कूल में पढ़ाई की। 10 में 93 और 12वीं में 94 प्रतिशत अंक से पास हुआ था। भरत के पिता का कहना है कि उन्होंने कभी भरत को पढ़ने के लिए नहीं टोका। दिन में स्कूल से आने के बाद वो अपनी मां के साथ दुकान में हाथ बटाता था। इसके बाद सुबह 4 बजे से उठकर खुद ही पढ़ाई करने बैठ जाता था। स्कूल में हमेशा फर्स्ट आता था। उसका सपना था कि वो बड़ा होकर वैज्ञानिक बने और उसने वो सपना आज पूरा कर दिया।

भरत इतना होनहार था कि वो पढ़ाई में अव्वल होने के साथ ही अपने माता पिता के हर सुख दुख में साथ देता। भरत की मां इडली दोसा की दुकान चलाती थी। भरत उस दुकान में जाकर बर्तन धोने या अन्य तरीके से मदद करता था। उसका बचपन से ही सपना था कि वो बड़ा होकर बड़ा साइंटिस्ट बने। भरत जब 12वीं में अच्छे नंबर से पास हुआ तो उसके बारे में पेपर और टीवी में न्यूज छपी थी कि केंद्रीय विद्यालय बीएमवाई (भिलाई मार्शलिंग यार्ड) के छात्र ने फिजिक्स में 99 केमिस्ट्री में 98 और गणित में 99 अंक हासिल किए। वह आईआईटी में पढ़ना चाहता है, लेकिन इसमें गरीबी बाधा बन रही है। न्यूज पढ़कर रायपुर के रहने वाले अरुण गोयल और उनकी पत्नी वनजा चरोदा पहुंचे। उन्होंने देखा कि एक 10 बाय 10 की झोपड़ी के बाहर एक लड़का बैठकर बर्तन धो रहा है। उसकी मां वहां कम करने वालों को इडली और अन्य नाश्ता दे रही थी। वनजा ने बर्तन धो रहे लड़के से पूछा यहां भरत कुमार कहां मिलेगा? जब भरत ने बोला की वो ही भरत कुमार है तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। भरत ने अपनी मार्कशीट दिखाई तो वो लोग दंग रह गए और उसकी आगे की पढ़ाई में आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया।

निशांत सिंह के बारें में जानिए
अंबिकापुर के गोधनपुर निवासी निशांत सिंह (30) इसरो में वैज्ञानिक हैं। उनके पिता कांग्रेस नेता और ठेकेदार हैं, जबकि मां गृहिणी हैं। चंद्रयान- 3 की चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद निशांत का नाम भी अन्य वैज्ञानिकों के साथ स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग बुधवार की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर होने वाली थी, लेकिन निशांत की मां, दादी, बुआ, चाची सहित परिवार के अन्य सदस्य सुबह से ही टीवी स्क्रीन पर टकटकी लगाए हुए बैठे थे। दिनभर पूजा-पाठ का दौर भी चलता रहा। परिवार के सदस्य भगवान से कामना करते रहे कि चंद्रयान-3 सफल हो। जैसे ही चंद्रयान-3 ने चांद पर कदम रखा, परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।

वैज्ञानिक निशांत सिंह की प्राथमिक शिक्षा अंबिकापुर के कार्मेल स्कूल से हुई। 10वीं तक की पढ़ाई उन्होंने नवोदय स्कूल बसदेई सूरजपुर में की। पढ़ाई में काफी होनहार निशांत ने 10वीं में टॉप किया। इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए केरल भेजा। 11वीं-12वीं की पढ़ाई केरल में करने के बाद उन्होंने दिल्ली में इंजीनियरिंग की और फिर वैज्ञानिक बने। वैज्ञानिक निशांत सिंह की बुआ बताती हैं कि वे बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर के निवासी हैं। वहां से निशांत के पिता सभी को लेकर अंबिकापुर आ गए थे। रामचंद्रपुर पहले अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है। एक छोटे से गांव से निकलकर निशांत ने अपना नाम राष्ट्रीय स्तर पर कमाया है। हमें अपने बेटे पर नाज है। वह 5 साल से इसरो में वैज्ञानिक है। उन्होंने बताया कि निशांत चंद्रयान-2 टीम का भी हिस्सा था, लेकिन उस समय इसकी सफल लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं हो पाई थी।


