ट्रेन हादसों को न्योता? रेल पटरियों में लापरवाही की ये तस्वीरें भिलाई की… कई जगह हुक और सपोर्ट पट्टी गायब; मेंटेनेंस नहीं होने से बढ़ा खतरा… DCM क्या बोले?

भिलाई। देश में रेल हादसों का एक सिलसिला चल रहा है। मिली जानकारी के अनुसार 2024 के शुरुआती 7 महीने में 7 बड़े ट्रेन एक्सीडेंट्स हुए, इनमें से 4 बार ट्रेन पटरी से उतर गई। इन सभी हादसों में 16 लोगों की मौत और 100 से ज्यादा घायल हुए हैं। लेटेस्ट हादसा 30 जुलाई को हुआ, जब मुंबई-हावड़ा मेल एक मालगाड़ी से टकरा गई, जो पहले से डिरेल थी। आज हम आपको छत्तीसगढ़ के भिलाई के रेल पटरियों का हाल बताएंगे। ये तस्वीरें सुपेला रेलवे ट्रैक की है। इन पटरियों से बहुत सारी हुक निकली हुई है। सपोर्ट के लिए लगनी वाली पट्टी भी गायब है। कई जगहों पर हुक और हुक को टाइट करने वाली पट्टी दोनों ही गायब है। जो आस पास बिखरे पड़े हैं।

कहीं-कहीं तो हुक किसी में आधी लगी है तो कहीं पूरी की पूरी बाहर है। सब हुक्स ढीले हैं उसे कसने की जरूरत है। सुपेला रेलवे फाटक के पास की ट्रैक है जो अब अंडरब्रिज बनने के बाद बंद हो गई है। स्थितियों को देखते हुए बड़ी दुर्घटना होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बराबर मेंटेनेंस नही हो पाना इसकी मुख्य वजह है। लगभग 500-700 मीटर की दूरी तक ये परेशानी देखा गया है। अप और डाउन लाईन दोनों ओर यही स्थिति नजर आ रही है।

ट्रैक के मेंटेनेंस और इंस्पेक्शन के लिए रेलवे का परमानेंट वे स्टाफ जिम्मेदार होता है। ट्रैक रिकॉर्डिंग कार (टीआरसी) वो वाहन होते हैं, जिनसे वो रेलवे ट्रैक की जांच करते हैं। मैनुअल के हिसाब से जिन रूटों पर ज्यादा स्पीड वाली ट्रेनें गुजरती हैं उन पर हर दो महीने में ट्रैक की जांच करने के निर्देश हैं। रिपोर्ट के अनुसार, तय समय में रेलवे के सभी जोन में कुल 350 इंस्पेक्शन किए जाने थे। इनमें से सिर्फ 169 इंस्पेक्शन हुए। इसी तरह फुट इंस्पेक्शन यानी पैदल ट्रैक की जांच भी जरूरत के मुताबिक नहीं हुई।

ट्रेन अपने सफर के दौरान, स्टेशन मास्टर और ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट के सिग्नल पर चलती या रुकती है। ट्रेन को रोकने और चलने के लिए शंटिंग की जाती है। ट्रेन को दिए जाने वाले सिग्नल में जरा सी चूक हो जाए तो ट्रेन अनियंत्रित हो सकती है। रेलवे के नियम, ट्रेनिंग, सुपरविजन, कम्युनिकेशन और ट्रैक के निरीक्षण की 5 स्लाइस वह बैरियर्स हैं जो हादसे को रोकते हैं, लेकिन अगर इन सभी में होल एक सीध में आ जाएं, यानी एक साथ सभी बैरियर्स में खामियां हो जाएं तो ट्रेन डिरेलमेंट का शिकार हो जाती है।

इसे ऐसे समझिए कि अगर एक ट्रेन कुछ नियमों की अनदेखी करके चला दी गई, ट्रेन को क्लियरेंस मिलने से पहले ट्रैक पर किसी रुकावट या दिक्कत का सेफ्टी चेक भी नहीं किया गया और बाद में इंजीनियरिंग और ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट में सही को-ऑर्डिनेशन भी नहीं हुआ और न ही किसी ऑफिसर ने ट्रैक का इंस्पेक्शन किया हो तो ट्रेन हादसे का शिकार हो जाएगी।

रेलवे के एसेट्स बढ़ाए जाने के साथ-साथ मैनपावर नहीं बढ़ाई गई। ट्रेन गुजरने पर स्टेशन मास्टर सिर्फ झंडी नहीं दिखाता। वह हर कोच को ध्यान से देखता है। अब रेलवे लाइन बढ़ा दिए जाने की वजह से ट्रेन को देखना मुमकिन नहीं होता। इसलिए ट्रेनें अनाथ की तरह पास हो रही हैं। ट्रैक मेंटेनेंस के काम में भी यही समस्या है। आउटसोर्सिंग किए गए लोग उतनी जिम्मेदारी से काम नहीं करते, जितना एक सरकारी नौकरी वाला ट्रैकमैन करता है। उसे अपनी नौकरी जाने का खतरा रहता है। इस मामले में सीनियर DCM अवधेश कुमार त्रिपाठी का कहना है कि, संबंधित अधिकारी और उनकी टीम को मौके पर भेजकर इसकी जांच कराई जाएगी। यदि ऐसा है तो जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।

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