रायपुर। सोचिये अगर किसी को सालों से, 25 सालों से जंजीरों से बांध कर रखा जाए तो उसकी क्या स्थिति होगी? ऐसा कृत्य हमारे छत्तीसगढ़ में 3 हाथी राजू, लाली और उनके बच्चे और सोनू के साथ हो रहा है। दरहसल वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने आरोप लगाया है कि, “छत्तीसगढ़ में अचानकमार टाइगर रिजर्व में हाथी लाली, राजू और उनके दो शावकों सावन और फागुन के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। लाली वन विभाग द्वारा 25 साल पहले बिना किसी कारण के पकड़ी गई थी उससे कोई जनहानि या धन हानि नहीं हुई थी। हाथी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत शेड्यूल 1 संरक्षण प्राप्त वन्य जीव है, लेकिन आज भी लाली बंधक है। वन विभाग के पास लाली को पकड़े जाने का कोई सरकारी दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं है। 2013 में राजनांदगांव से एक गांव मैं हुई एक जनहानि के मामले में हाथी राजू को बंधक बना लिया। गौरतलब है कि इन हाथियों को जंगल में पुनर्स्थापित करने का कोई भी प्रयत्न वन विभाग द्वारा कभी भी नहीं किया गया। जोकि छत्तीसगढ़ वन विभाग की असंवेदनशीलता का ज्वलंत उदाहरण है।”

उन्होंने आगे बताया कि, इन हाथियों को वर्षों से जंजीरों में बंधे रहना पड़ रहा है और अचानकमार टाइगर रिजर्व बिलासपुर में उनकी देखभाल के लिए कोई सुविधा नहीं हैं। इन दोनों हाथियों के कैद में रहते दो बच्चे भी दिए जिनका नाम सावन और फागुन है फागुन छोटा है परंतु 5 साल के सावन को भी लाली और राजू की तरह जंजीरों से बांधकर रखा जाता है। जंजीर बंधे होने के खेलने कूदने की उम्र होने के बावजूद वह ढंग से दौड़ भी नहीं सकता है।”
उन्होंने आगे बताया कि, “जंजीरों से बंधे रहने के कारण और सोशल इंटरेक्शन न होने के कारण लाली और राजू शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हैं। बार-बार सर हिला कर और अपने शरीर को दिन भर आगे पीछे कर ये हाथी तनाव और गहन अवसाद के लक्षण दिन भर दिखाते रहते है। हाथी सामाजिक वन्य प्राणी है और मानव द्वारा ना सुन सकते वाली इंफ्रासोनिक साउंड में यह आपस में कई किलोमीटर तक बात करते हैं, जिससे इनका सोशल इंटरेक्शन बना रहता है। अचानकमार टाइगर रिजर्व में इन बंधक हाथियों के अलावा कोई भी जंगली हाथी नहीं है जिनसे लाली और सोनू सोशल इंटरेक्शन कर सके और जंगल में मिल सके। सोशल इंटरेक्शन के बिना हाथी गहन अवसाद में चले जाते हैं।”
यदि आप लाली और राजू को मुक्त कराना चाहते हैं तो कृपया अधिकारियों को मेल करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें...
2016 से सोनू भी जंजीरों में झकड़ा हुआ था
वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने बताया कि, “2016 में पकड़े गए सोनू नाम के हाथी के चारों पैर बड़े घावों से भर गए थे जो उसकी यातना की गंभीरता को दर्शाते थे तब वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी द्वारा दाखिल जनहित याचिका में हाथी विशेषज्ञ केरल के डॉक्टर राजीव टी. एस. से राय ली गई। उन्होंने लाली राजू और सोनू को ऐसे जंगल में फॉरेस्ट कैंप में रखने का सुझाव दिया जहां पर काफी संख्या में जंगली हाथी हो जिससे लाली और राजू भी हाथी जंगली हाथियों से मिल सके ताकि उनका सोशल इंटरेक्शन हो। इन हाथियों को जंजीर से बांधने और इन पर अंकुश का उपयोग बंद करने का सुझाव डॉ राजीव टी. एस. ने दिया था। उच्च न्यायालय बिलासपुर ने हाथियों के एक्सपर्ट डॉ राजीव टी. एस. की राय स्वीकार कर रिकॉर्ड में ली थी। परंतु बाद में सिर्फ सोनू हाथी को ही सरगुजा एलिफेंट रिजर्व के पास रामकोला के एलीफेंट रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेजा गया।”
उन्होंने आगे बताया कि, “सरगुजा के एक अधिकारी की राय पर लाली और राजू को अचानकमार टाइगर रिजर्व में पेट्रोलिंग के लिए रख लिया गया। छत्तीसगढ़ वन विभाग के अधिकारी बंधक हाथियों को वन्यप्राणी न समझ कर मशीन समझते हैं और यह दावा करते हैं कि उन्हें मैनेजमेंट के लिए लाली और राजू की जरूरत की जरूरत अचानकमार टाइगर रिजर्व में है। मशीन के रूप में उपयोग हो रहे राजू को ट्रक में खड़ा कर एक दिन में सैकड़ो किलोमीटर मैनेजमेंट के नाम से भिजवाया जाता है। छत्तीसगढ़ वन विभाग को हाथियों के दुख को समझने का समय ही नहीं है।”
वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने बताया कि, “राजू जब मद अवस्था में आता है तो उसके चारों पांव जंजीर से बांधकर कंक्रीट की फ्लोर में कई महीने खड़ा रखा जाता है जिससे वह अपने पांव आगे पीछे भी ना कर सके। वन्य जीव प्रेमियों की आपत्ति आने के बाद कंकरीट फ्लोर तो हटा ली गई पर कई महीने अभी भी खड़ा रखा जाता है। आज उच्च न्यायालय के आदेश को लगभग 7 साल हो गए हैं, लेकिन वन विभाग ने हाथियों को डॉ राजीव द्वारा सुझाए गए जंगल के कैंप में पुनर्वासित नहीं किया है और उन्हें जंजीरों में रखा है।”
वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने कहा कि, “बंधक लाली की अमानवीय स्थिति का जिसमें वह गहन अवसाद के कारण पूरे समय अपना सिर हिलाते रहती है और राजू पर किए जा रहे अत्याचार का समाचार और वीडियो वायरल होने के बाद देशभर में पशु प्रेमियों में रोष है। सैकड़ो ईमेल के माध्यम से सीएम विष्णुदेव साय और वन अधिकारियों से इन बंधक हाथियों के कल्याण के लिए और इन पर अंकुश और जंजीरों का उपयोग बंद करने की अपील की जा रही है। लाली, राजू और उनके दोनों बच्चों को रामकोला स्थित एलीफेंट रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर एलीफेंट में भेजने की मार्मिक अपील और बेड़ियों और अंकुश के इस्तेमाल को हाथियों पर बंद करने की मांग देशभर के पशु प्रेमी द्वारा की जा रही है।”
अफसर ने क्या कहा?
हरिभूमि अख़बार में प्रकाशित खबर के अनुसार इस मामले में एटीआर के डिप्टी डायरेक्टर यूआर गणेश का कहना है कि राजू तथा लाली को प्रोटोकॉल के तहत रखा जाता है। अफसर के अनुसार हाथियों के साथ किसी भी तरह के अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा रहा है।