17 को खैरागढ़ का जिला बनना तय: CM भूपेश ने सवाल के जवाब में लिखा- चिंता झन कर नोनी, कका आउ कांग्रेस के वादा नई टूटय

भिलाई। खैरागढ़ उपचुनाव को लेकर सभी पार्टी के नेता-कार्यकर्ता प्रचार अभियान जोर-शोर से कर रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा खैरागढ़-छुईखदान-गंडई को जिला बनाने का ऐलान के बाद लोग तरह-तरह की प्रतिक्रिया देते दिख रहे हैं।
इस बीच बीते शनिवार को सीएम ने खैरागढ़ क्षेत्र में रोड शो किया। इस दौरान एक किशोरी ने सीएम को तख्ती लिए हुए पूछ रही थी कि “17 अप्रैल के खैरागढ़ जिला बनही न कका…” इसके बाद मुख्यमंत्री ने बालिका की तस्वीर ट्वीट कर जवाब दिया है- “हव नोनी चिंता झन कर…कका आउ कांग्रेस के वादा नई टूटय।”

आज शाम 5 बजे तक थम जाएगा प्रचार
खैरागढ़ विधानसभा के गांवों-शहरों में पिछले 20 दिनों से चल रही चुनाव प्रचार की आंधी रविवार शाम थम जाएगी। चुनाव प्रचार के लिए खैरागढ़ विधानसभा के चार प्रमुख मोर्चे हैं। कांग्रेस और भाजपा ने अपने महारथी नेताओं को इन मोर्चों पर 15 दिनों से तैनात कर रखा था। प्रचार अभियान के सभी दांव-पेंच इन्हीं महारथियों के नेतृत्व में खेले गए हैं।

अब परिणाम बताएंगे कि किस मोर्चे ने जीत में क्या भूमिका निभाई।
खैरागढ़ विधानसभा का क्षेत्र भौगोलिक रूप से दो प्रमुख हिस्सों में बंटा है। पहला मैदानी इलाका है जिसका विस्तार खैरागढ़, छुईखदान और गंडई के अधिकांश हिस्सों में है। दूसरा हिस्सा पहाड़ी है जो साल्हेवारा क्षेत्र में पड़ता है। सामाजिक रूप से इसके चार प्रमुख क्षेत्र हैं। पहला खैरागढ़ से जालबांधा तक का इलाका।

इस इलाके में लोधी समाज की बहुलता है। खैरागढ़ से छुईखदान तक एक मिश्रित आबादी वाला इलाका है। वहीं छुई खदान से गंडई तक सतनामी समाज की आबादी अधिक है। साल्हेवारा के वन क्षेत्र में आदिवासी समाज की बड़ी आबादी रहती है। राजनीतिक दलों का पूरा प्रचार अभियान इसी जातीय-सामाजिक ध्रुवीकरण के गणित पर केंद्रित था। सत्ताधारी कांग्रेस ने इसमें एक कदम आगे बढ़कर किसान को एक समाज के रूप में ले आई है। वहीं भाजपा “राम नाम’ के सहारे लोगों को एकजुट करने की कोशिश में जुटी रही।

कांग्रेस के हर विधायक को चार-पांच बूथ का जिम्मा
कांग्रेस ने यहां अपने कई और मंत्रियों-विधायकों को प्रचार में लगा रखा था। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने राजपरिवार के समर्थकों पर फोकस किया था। उन्होंने खैरागढ़ और साल्हेवारा क्षेत्रों में जोरदार दौरा किया। वहीं अमरजीत भगत प्रभारी मंत्री होने की वजह से लगातार सक्रिय रहे।

बीमार हो गए। दो दिन बाद फिर मैदान में पहुंचे। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने वॉर रूम में मोर्चा संभाला। कांग्रेस के 70 में से कम से कम 50 विधायक प्रचार में लगे रहे। प्रत्येक विधायक को चार से पांच बूथ पर प्रचार और प्रबंधन का जिम्मा दिया गया था।

2018 में लोधी वोटों के बंटवारे से हारी थी भाजपा
2018 के चुनाव में कांग्रेस ने गिरवर जंघेल को उतारा। देवव्रत सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जनता कांग्रेस से चुनाव लड़ा और कड़े मुकाबले में 870 मतों से कोमल जंघेल को हरा दिया।

नों को करीब 36-36% वोट मिले। वहीं कांग्रेस को केवल 19% यानी 31 हजार वोट ही मिल पाए। भाजपा का कहना है कि लोधी वोटों के बंटवारे की वजह से वह चुनाव हार गई। आंकड़ों के मुताबिक गंडई क्षेत्र से देवव्रत सिंह को कुछ वोटों की बढ़त मिल गई जो अंतत: जीत में बदली। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है, यह क्षेत्र हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यह चुनाव फिर साबित करेगा कि यहां कि जनता कांग्रेस पर ही भरोसा करती है।

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