आंध्रप्रदेश में समरालु पूजन उत्सव में शामिल हुए विधायक देवेंद्र यादव: माता की पूजा-अर्चना कर ​लिया आशीर्वाद… करीब के गांवों में रहने वाले से भी मिले

भिलाई। आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के तटवर्ती गांव मेट्टूरु में श्री श्री श्री माता कोण्ड महांकाली माता का उत्साव मनाया जा रहा है। इन उत्सवों को यहां की प्रान्तीय भाषा में सम्बरालू कहा जाता है। भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव इस पावन धार्मिक आयोजन में शामिल हुए। उन्होंने ग्रामीणों के साथ मिलकर माता की आराधना की। 3 जून 2025 मंगलवार को ग्राम देवी श्री श्री श्री कोडम्मा महाकाली देवी के मंदिर में भव्य पूजा अर्चना का आयोजन किया गया है। इसमें विधायक यादव शामिल हुए। माता की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की। माता की पूजा अर्चना कर हाथ जोड़कर उन्होंने सब की सुख शांति और समृद्धि की कामना की।

इस दौरान उन्होंने आंध्रा समाज के वशिष्ठ व सम्मानित नागरिकों का दिल से आभार जताया और कहाँ की अगर वे उन्हें निमंत्रण नहीं दिए होते तो वे इस पावन पर्व में शामिल नहीं हो पाते। यहाँ आकर देवी माता की पूजा में शामिल होकर ऐसे लगा जिसका बया करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है। आप को बता दे कि यहां आसपास अक्कूपल्ली, मेट्‌टूरू सहित कई गांव है। जहां के लोग भिलाई में रहते है। उनका परिवार इन गांवों में बसते है। उन सब से मुलाकात करने पहुंचे। विधायक श्री यादव बारी बारी से सभी से मिले। सब का कुशल क्षेम जाना। बड़ो को प्रणाम कर आशिर्वाद लिए।

सम्बरालू एक तरह से माता प्रकृति व ग्राम देवता व अन्य अदृश्य व अलौकिक शक्तियों को मानव जीवन को सुख समृद्धि आयु आरोग्य व फसलों की समृद्धि हेतु देवी देवता को प्रत्यक्ष रूप से कृतज्ञता दर्शाना है न जाने ये मान्यता विगत कितने शतकों से चली आ रही है पर‌आज भी उतनी ही श्रद्धा भक्ति व वैभव के साथ मनाया जाता हैं। यह सम्बरालू प्रत्येक 5 वर्षों में एक बार मनाया जाता है। पर मेट्टूरु में‌ अपरिहार्य कारणों से और करोना काल की वजह‌ से 9 वर्षों बाद मनाया जा रहा है।

आपको बता दे की समरालू कार्यक्रम आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के मेट्टूरू गांव में हर तीन वर्ष में आयोजित किया जाता है, जहां देवी मां की पूजा भव्य रूप से होती है। भिलाई में जब स्टील प्लांट की स्थापना हुई थी, तब आंध्र प्रदेश के पलासा मंडल अंतर्गत श्रीकाकुलम जिले से बड़ी संख्या में लोग यहां नौकरी करने आए थे। इनमें से कुछ लोग सेवा-निवृत्ति के बाद अपने मूल स्थान लौट गए, लेकिन कई परिवार स्थायी रूप से भिलाई में ही बस गए। आंध्र समाज की सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने के लिए वे आज भी इस प्रकार के आयोजनों में बड़ी श्रद्धा से भाग लेते हैं।

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