भिलाई में “पावस ऋतु” पर काव्य गोष्ठी: बारिश पर सबने प्रस्तुत किए काव्य…छत्तीसगढ़ी में लिखे काव्य सुन गदगद हुए साहित्यकार, शिक्षाविद् आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा बतौर अतिथि हुए शामिल

भिलाई। छत्तीसगढ़ साहित्य सृजन परिषद भिलाई व्दारा “पावस ऋतु”पर काव्य गोष्ठी का आयोजन राज-राजेश्वरी मंदिर पावर हाउस भिलाई में किया गया। मुख्य अतिथि साहित्य -संस्कृतमर्मज्ञ एवं शिक्षाविद आचार्य डॉ महेश शर्मा, विशिष्ट अतिथि डॉ संजय दानी कवि एवं साहित्यकार, विशिष्ट अतिथि प़दीप वर्मा वरिष्ठ कवि एवं गीतकार तथा अध्यक्षता कवि एन एल मौर्य “प़ीतम”ने किया।
सर्व प्रथम अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के तैल चित्र पर दीप प्रज्ज्वलित कर एवं माल्यार्पण किया गया और ओशीन काम्बोज व्दारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया गया अतिथियों के स्वागत के पश्चात कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।यह संयोग ही कहा जाएगा कि मंदिर के प्रांगण में “पावस ऋतु”पर गोष्ठी शुरू हो रही थी और बाहर में सावन के बादल झूम -झूम के बरस रहे थे, फिर क्या था कवि और कवियित्रियों ने भी वर्षा ऋतु पर काव्य गोष्ठी शुरू कर दिए ।
निज़ाम राही-मौसम हुआ सुहाना बरसात के दिनों में, छेड़ो कोई राग बरसात के दिनों में। खूब बाहवाही लूटे। टी आर कोसरिया अलकरहा- बरसात के बूंद परे ल माटी ह ममहावथे,धुर्राउडावत धक-धक छाती भुइयां के डाह भुतावथे।सराहे गए।रामबरन कोरी कशिश वहीं चिरपरिचित अंदाज में समां बांधा -मेघो ने मंडप ताना अम्बर में, सौदामिनी को दमकना होगा। तालियां बटोरे। रियाज़ ख़ान गौहर ने अपनी बात यौ रखी -जो मिला ही नहीं है मूलाकात में,वो मजा आयेगा बरसात में। लोगों के दिल को छू लिया।

नवेद रज़ा दुर्गवी पावस ऋतु पर कविता पढ़कर खूब बाहवाही लूटी -दुशाला हरा ओढ़ के, भूमि करें श्रृंगार। पावस ऋतु अब आ गई, शीतल लगे बहार। डा नरेंद्र देवांगन देव ने भी इन पंक्तियों पर बाहवाही लूटे -माटी की सौंधी महक,जीने को जो दे ललक,मन का मयूरा नाचे,होत बरसात है।

माला सिंह ने भी बरसात पर अपनी बात रखी -सावन की बूंदें वर्षा की बहार है।सराही गई।नीलम जायसवाल के हृदय उदगार ये थे -दो बातें हो सकती हैं सावन की बहार मैं,एक तो भक्ति करुं पावन इस त्यौहार में। अच्छी तालियां बजी। डाक्टर वीना सिंह “रागी”वर्तमान समय पर व्यंग कसती हुई -ठंड हो रही चाय नज़र नहीं नमकीन पर,नचा रहे अंगूलिया क्यों मोबाइल स्क्रीन पर।सराही गई। विद्यानंद कुशवाहा ने कहा कि -कह रहीं हैं नदियां समुद्र से, इतना भी अभिमान अच्छा नहीं है।सराहे गए।

रश्मि पुरोहित प्राचीन नारी का चित्र खिंचा और सराही गई -सदियों के कर्तव्य मर्यादा के धागों में बुनी हुई स्त्री,कुंठा की वेदी पर चढ़ाई जाती है। प्रीति सरु की इन पंक्तियों पर खूब दाद मिली -मुझे तूं जान ले दुनिया के हिम्मत नाम है मेरा,हुजू पे गम का सीना चीरकर रस्ता बनाती हूं। गजेन्द्र व्दिवेदी “गिरीश”की भाव व्यक्ति -प़ेम स्नेह अनुराग लिखूंगा, नहीं किसी के दाग़ लिखूंगा। तालियां बटोरे। ओशीन काम्बोज प्रेम को परिभाषित करती हुई खूब बाहवाही लूटी-ये न समझो रुक जायेगी,ये न समझो झुक जायेगा , प्रेम नहीं डरता किसी से ये न समझो झुक जायेगा। गीतकार नभनीर हंस अपने अतंस की वेदना व्यक्त करते हुए कहा- तेरा-मेरा प्यार नहीं संसार के जैसा,तेरा-मेरा प्यार है बस दिल दप्यार के जैसा। खूब तालियां बजी। सोनिया सोनी ने रस परिवर्तन करते हुए कहा कि -मेरी वफ़ा में कमी थी शायद, जो तूने मेरा यूं दिल दुखाया। लोगों ने खूब सराहा।

त्रिलोकी नाथ कुशवाहा “अंजान”ने भी अपनी रचना पर बाहवाहि लूटे -प्यार के दरिया किनारे,लहर गिनने वाले, डूबने वाला ही कोई पार हो जायेंगे। बैकुंठ महानंद ने भी बरसात पर अपने विचार रखे है -बरसता था धरा पर बनकर पानी,वो अब बचा नहीं, कहा से बरसेगा पानी।सराहे गए।
विशिष्ट अतिथि डॉ संजय दानी की सस्वर प़स्तुति पर लोगों ने खूब तालियां बजाईं -बादलों से करार कर रहा हूं, तुझपे एतबार कर रहा हूं।
विशिष्ट अतिथि श्री प़दीप वर्मा वरिष्ठ साहित्यकार छत्तीसगढ़ी में रचना सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिए -करिया बादर आ जा रे आ,झन टुहू देरवा बरस तो जा।

त्रिलोकी नाथ कुशवाहा “अंजान”ने भी अपनी रचना पर बाहवाहि लूटे -प्यार के दरिया किनारे,लहर गिनने वाले, डूबने वाला ही कोई पार हो जायेंगे। बैकुंठ महानंद ने भी बरसात पर अपने विचार रखे है -बरसता था धरा पर बनकर पानी,वो अब बचा नहीं, कहा से बरसेगा पानी।सराहे गए।
विशिष्ट अतिथि डॉ संजय दानी की सस्वर प़स्तुति पर लोगों ने खूब तालियां बजाईं -बादलों से करार कर रहा हूं, तुझपे एतबार कर रहा हूं।
विशिष्ट अतिथि श्री प़दीप वर्मा वरिष्ठ साहित्यकार छत्तीसगढ़ी में रचना सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिए -करिया बादर आ जा रे आ,झन टुहू देरवा बरस तो जा।

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