राजनांदगांव। अतुल श्रीवास्तव, एक समर्पित और अनुभवी पत्रकार, जिन्होंने 27 वर्षों तक पत्रकारिता के क्षेत्र में ईमानदारी और निष्ठा से काम किया, आज बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं। 2021 में अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उन्हें लकवे (पैरालिसिस) ने जकड़ लिया, और अब वे चलने-फिरने में भी असमर्थ हैं। लगातार इलाज, ऑपरेशन और दवाइयों के कारण आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। अब उनके पास कोई आय का साधन नहीं बचा है। आज जब उन्हें सबसे ज़्यादा मदद की ज़रूरत है, तो हम सबका साथ ही उनका सहारा बन सकता है।

अतुल श्रीवास्तव : एक अनसुलझा, अस्वस्थ पत्रकार – जानिए उन्होंने क्या अपील की…?
मेरे आसपास की दुनियाँ मुझे इसी नाम से जानती और पहचानती है. चूँकि पेशे से पत्रकार रहा हूँ इस कारण हो सकता है जाने अँजाने मेरे अपने काम से आपको कोई तकलीफ़ हुई हो.
लेकिन यकीन मानिए जब तक मैंने काम किया पूरी ईमानदारी से किया. भले ही वह अच्छा हो या बुरा. काम किया . . . कर नहीं रहा हूँ . . . ऐसा मैंने क्यूं लिखा ?
दरअसल, काफी समय से मैं बीमार हूँ. इतना अस्वस्थ कि इन दिनों घर पर ही, अपने ही बिस्तर में पडा़ रहता हूँ. मेरी बीमारी ही मेरे काम के आडे़ आ रही है.
नहीं तो जब मैं पूरी तरह से स्वस्थ था तब मैंने छोटे – बडे़ तमाम तरह के अखबारों में काम किया है. मेरी कलम की धार राजनांदगाँव से प्रकाशित प्रात: दैनिक “सबेरा सँकेत” से पैनी होना शुरू हुई थी.
इसके बाद मुझे सीखने समझने का अवसर “देशबँधु” में मिला. प्रधान कार्यालय में तब काम करना हर किसी के लिए गौरव की बात हुआ करती थी.
रायपुर से लौटा तो “नाँदगाँव टाइम्स” से लेकर “शाश्वत सँदेश” जैसे अखबारों में काम करने का अवसर मिला. फिर मुझे राज्य स्तर पर “देशबँधु” में वापसी का अवसर मिला.
यह वही समय था जब राज्यों के नक्शे पर छत्तीसगढ़ का भी नाम उदित हुआ था.
. . . और फिर “हरिभूमि” जैसे दमदार अखबार में अपनी कलम को और धार देने का अवसर मिला. इसके राजनांदगाँव ब्यूरो के बाद राजधानी में कलम चलाने मिली थी.
प्रिंट से फिर मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया में आ गया. यहाँ मुझे “सहारा समय” ने अपना सहारा दिया. इस चैनल को मैंने अपने बेश्कीमती 11 वर्ष दिए थे. लेकिन . . .
खैर छोडिए. . . बात अभी अपनी ही.
फिर मैं इलेक्ट्रानिक से वापस प्रिंट मीडिया की ओर लौट आया. यहाँ मैंने पूरे एक वर्ष “भास्कर भूमि” में लगाए. आपके आशीर्वाद से “भास्कर भूमि” में सँपादक का दायित्व मिला था.
मैंने एक वर्ष इसलिए लिखा कि इस अखबार की आयु ही महज 12 माह की थी. इस छोटी सी अवधि में भी यह अखबार छोटे बडे़ हर तरह के पाठकों की जरूरत बन चुका था.
चूँकि अखबार में ताला लटक रहा था इस कारण फिर मुझे नौकरी की तलाश में भटकना पडा़. यह वही समय था जब छत्तीसगढ़ की भूमि पर राजस्थान से आया अखबार “पत्रिका” पैर जमाने का प्रयास कर रहा था.
इसके पैर कितने जमे यह तो नहीं मालूम लेकिन इस अखबार के प्रबँधन ने मुझे एकतरफा कार्यमुक्त कर दिया. कारण था मेरा अस्वस्थ हो जाना.
क्या कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अपनी तबियत बिगाड़ता है ?
उस वक्त मैं “पत्रिका” में राजनांदगाँव का ब्यूरो चीफ रहा जब मुझे दिसंबर 2021 में लकवा की शिकायत हुई. जब किसी के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब अखबार ने ही मेरा साथ छोड़ दिया.
2021 में जब तबियत खराब हुई तब प्रेस क्लब अध्यक्ष भाई सचिन अग्रहरि के प्रयास के बाद तत्कालीन कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा जी ने राज्य सरकार के खर्च पर पूरा इलाज रामकृष्ण केयर हास्पिटल में कराया.
उस समय करीब 17-18 लाख खर्च हुए लेकिन उस समय से दवाओं आदि का खर्च मैं ही कर रहा हूँ. रामकृष्ण से दायाँ हाथ और पैर का पैरालिसिस लेकर घर लौट आया.
फिर शुरु हुई फिजियोथेरेपी.
लगातार फिजियोथेरेपी से कुछ राहत मिल रही थी कि अभी बीते दिनों जुलाई 2024 में पंचकर्म के दौरान आयुर्वेद विभाग के सेंटर में ही गिर गया. एक्स-रे में हिप बोन फ्रैक्चर आया.
इसके इलाज के लिए जुलाई से नवंबर तक एम्स के चक्कर काटने और वहां भर्ती होने के बाद भी जब कोई राहत नहीं मिली तब दिसंबर अंत में रामकृष्ण में एक बार फिर भर्ती हुआ.
मैं महापौर मधुसूदन यादव का उल्लेख करना भूल नहीं पाऊँगा. महापौर बनने के पहले उन्होंने मुझ जैसे जरूरतमँद पत्रकार की तब मदद की जब मैं पत्रकारिता से ही दूर हो गया था. यह समय था 2024 का.
और इस साल की शुरूआत में 1 जनवरी को हिप का आपरेशन भी हो गया. इस आपरेशन में करीब 4 लाख का खर्च आया. इसमें से 2 लाख पत्रकार कल्याण कोष से प्रेस क्लब अध्यक्ष सचिन अग्रहरिजी ने स्वीकृत करा दिए थे.
और बाकी रकम की व्यवस्था परिचितों के माध्यम से हुई. हिप का आपरेशन तो हो गया पर पैरालिसिस के चलते सीधा हाथ और पैर काम नहीं कर रहे हैं. यह स्थिति दिसंबर 2021 से ही है.
तकरीबन 27 साल मैंने सक्रिय पत्रकार का दायित्व अपनी ओर से पूरी ईमानदारी से निभाने का प्रयास किया. उम्र के 52 बसँत देख चुका हूँ लेकिन 60-62 का क्यूं नहीं हूँ यह सोचकर दुख मनाता हूँ.
60-62 इसलिए लिखा कि अभी के राज्य स्तरीय बजट में पत्रकारों की पेंशन 10 से बढा़कर 20 हजार किए जाने की खबर सुनाई दी है.
. . . लेकिन क्या वह मुझे मिल पाएगी ?
इसकी एक नहीं दो शर्त पूरी नहीं कर रहा हूँ. एक उम्र और दूसरी अधिमान्यता की. पेंशन योजना के लिए पत्रकार की उम्र 60-62 वर्ष होनी चाहिए और कम से कम 10 वर्ष की अधिमान्यता होनी चाहिए.
साथ ही कम से कम 20 साल अनुभवी पत्रकार होना चाहिए. 2021 में जब बीमार हुआ तब तक करीब 27 साल की पत्रकारिता मैंने कर ली थी. हालाँकि मेरी उम्र 52 साल ही है और अधिमान्यता नहीं है.
वैसे डाक्टर साहब (सर्वश्री डा. रमन सिंहजी) चाहें तो प्रदेश में मिसाल बनवा सकते हैं कि उन्होंने एक पुराने पत्रकार जो कभी उनका करीबी रहा है और अधिमान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन लंबी पत्रकारिता कर चुका है और जरूरतमंद है, को उन्होंने इस योजना में शामिल कराया है.
काश ऐसा हो पाता ?
खैर, दवाईयों का खर्च काफी है और आय का कोई जरिया भी नहीं है. इस कारण आपसे आर्थिक सहयोग की अपेक्षा है.
यह सोचकर करिएगा कि आपके पैसे आपको शायद ही मिल पाए. फिर भी जिंदगी यदि रही और बेहतर रही, स्वस्थ्य रही तो लौटाने का वायदा रहा आपसे . . !
मेरी बैंक डिटेल :
अतुल श्रीवास्तवमोबाइल नंबर
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एसबीआई
मेन ब्रांच, कामठी लाइन राजनांदगांव