आज सरोज पांडेय का BIRTHDAY: एक साथ मेयर, विधायक और सांसद का गिनीज और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड…दुर्ग में ढहाया था कांग्रेस का किला, अब सरोज के अगले कदम पर सबकी नजर

भिलाई। आज राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय का जन्मदिन है। सरोज पांडेय के जन्मदिन पर आज भिलाई TIMES उनके जीवन के कुछ कही-अनकही बातों को बताने जा रहा है। तो देर नहीं करते, सीधे खबर पर आते हैं…।

सरोज पांडे का जन्म 22 जून 1968 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग में हुआ था। राजनीति में जाने का उनका कोई इरादा नहीं था। वे कॉलेज टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट थीं। कॉलेज में प्रोफेसरशिप भी मिली लेकिन ज्वाइन नहीं किया। रेडियो में अनाउंसर बनीं, दूरदर्शन में न्यूज रीडर के तौर भी चयन हुआ। उनकी स्वच्छ व मेधावी छवि के कारण भाजपा की ओर से उन्हें मेयर का टिकट दे दिया गया। जीत हासिल हुई और उन्होंने इतना शानदार प्रदर्शन किया कि पूरे इलाके की जनता उनके कार्यों की कायल हो गईं।


सरोज पांडेय ने जब दूसरी बार मेयर पद का चुनाव लड़ा तो रिकॉर्ड वोटों से जीतीं। उन्होंने भाजपा से अपने शहर भिलाई के लिये विधायक का टिकट मांगा, लेकिन पार्टी ने सर्वे में सबसे पिछड़ रही वैशाली सीट पर इन्हें आजमाया। सरोज पांडेय ने वहां भी जोरदार जीत दर्ज की।

इसी दौरान दुर्ग के तत्कालीन सासंद को पार्टी ने निकाल दिया और एक चुनौती के तौर पर सरोज पांडेय को मैदान में उतारा गया। वे दुर्ग से 15वीं लोकसभा के लिए चुनी गईं। उस समय वे विधायक तो थीं ही, तकनीकी तौर पर मेयर भी थीं और सासंद भी बन चुकी थीं।

इस तरह से देश की त्रि-स्तरीय पंचायत व्यव्स्था में एक साथ तीनों सदनों की सदस्य रहने वाली सरोज पांडेय के नाम पर एक अनोखा रिकॉर्ड बना। उन्हें सर्वश्रेष्ठ मेयर का पुरस्कार भी मिला चुका है। वर्ष 2013 में भाजपा ने उन्हें महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया। मार्च 2018 से वे छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद हैं।

इसके अलावा 2023 में विधानसभा चुनाव है। अब सरोज पांडेय के अगले कदम पर सबकी नजर है। चर्चा में है कि दुर्ग शहर से चुनाव लड़ सकती हैं। चूंकि, भाजपा चाहती है कि उस सीट को किसी भी तरह से जीते। जिसके लिए भाजपा के पास दुर्ग शहर में जिताऊ कैंडिडेट कोई नहीं है। लगातार दो बार भाजपा उस सीट को हार चुकी है। ऐसे में सबकी नजरें सरोज के कदम की है।


देश की प्रमुख 20 शक्तिशाली नारी में सरोज पांडेय का नाम…
शक्तिशाली नारी शक्ति 2020 के सर्वे ” नारायणी नमः” में फेम इंडिया मैगजीन और एशिया पोस्ट सर्वे द्वारा समाजिक स्थिती , प्रभाव , प्रतिष्ठा , छवि , उद्देश्य , समाज के लिए प्रयास , देश के आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव जैसे दस मानदंडों पर किए गए स्टेकहोल्ड सर्वे में देश की प्रमुख 20 शक्तिशाली नारी में सरोज पांडेय प्रमुख स्थान पर है ।

गिनीज और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी नाम
– सरोज पांडेय ने राजनीति में कम उम्र में ही लोहा मनवा चुकीं है। डॉ. सरोज पांडेय एक साथ महापौर, विधायक और सांसद रह चुकी हैं।
– उनका यह रिकॉर्ड गिनीज और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है। 10 साल तक लगातार बेस्ट मेयर का अवार्ड से सम्मानित किया गया।
– उन्होंने छत्तीसगढ़ में बीजेपी के नेता के तौर पर पहली बार महापौर का चुनाव लड़ा और जीत मिली थी।

– 2008 में भिलाई के वैशाली नगर सीट से विधानसभा से चुनाव लड़ा। उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी के बृजमोहन को लगभग 15 हजार मतों से हराया था। बस यहीं से सरोज के करियर में टर्निंग पॉइंट आ गया। जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

दुर्ग से पहली बार बनीं सांसद
– बीजेपी ने 2009 में उन्हें महापौर रहते हुए आम चुनाव में विधायक और दुर्ग सीट से लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर खड़ा कर दिया।
– डॉ. सरोज का सीधा मुकाबला बीजेपी से बगावत कर बाहर हुए दुर्ग से लगातार तीन बार के सांसद ताराचंद साहू से था।

– पांडेय ने साहू को भारी मतों से हराया। इसी जीत के साथ पांडेय का राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ता चला गया।
– सांसद रहते ही पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया।

मोदी लहर के बावजूद हार का सामना
– डॉ. सरोज को 2014 में हुए आम चुनाव में मोदी लहर होने के बाबजूद हार का सामना करना पड़ा।
– छत्तीसगढ़ से इकलौती बीजेपी कैंडिडेट थीं, जिन्हें हार मिली। इसके बाद राजनीति की गलियों में सरोज की आलोचना शुरू हुई।

– माना जाने लगा कि अब इनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया। लेकिन बीजेपी ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी जिम्मेदारी दी।
– वह महाराष्ट्र में सफल हुईं। इसके बाद नेशनल लेवल डॉ. सरोज पांडेय की पकड़ मजबूत होती गई।

दुर्ग में ढहा दिया था कांग्रेस का किला
– नगरीय निकायों में अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर और अध्यक्ष के चुनावों के दौर में कांग्रेस का एकतरफा सिक्का चलता रहा, लेकिन वर्ष 1999 में प्रत्यक्ष प्रणाली यानि पार्षदों की जगह जनता के द्वारा महापौर के सीधे चुनाव का नियम लागू होते ही दुर्ग में कांग्रेस का किला ढह गया

– कांग्रेस के छात्र विंग से भाजपा में आकर सरोज पांडेय ने यह कारनामा किया। इसके साथ ही उन्होंने दुर्ग की पहली महिला और सबसे कम उम्र की महापौर होने का गौरव भी हासिल किया

– दुर्ग का सबसे ज्यादा समय तक महापौर रहने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम है। सरोज ने वर्ष 1999 के बाद 2004 के भी चुनाव में दो बार जीत दर्ज की।

– दुर्ग में महापौर के पद से राजनीतिक सफर शुरू करने वाली सरोज पांडेय इन दिनों भाजपा के राष्ट्रीय इकाई में महत्वपूर्व दायित्व संभाल रही हैं


– वर्ष 1999 में अप्रत्यक्ष प्रणाली में बदलाव के साथ नगरीय निकायों में निर्वाचित सदन का कार्यकाल 4 से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया। इससे पहले हर चार साल में पार्षदों का निर्वाचन होता था और निर्वाचित पार्षद हर साल महापौर का चुनाव करते थे। वर्ष 1994 के चुनाव के बाद पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश के तत्कालिन दिग्विजय सिंह सरकार ने महापौर के हर साल चुनाव पर रोक लगाकर कार्यकाल पूरे 4 साल के लिए कर दिया था।

– वर्ष 1981 में दुर्ग नगर निगम बनने के बाद पहले दो परिषद में कुल 6 महापौर बने। इसमें सुच्चा सिंह ढिल्लो, आलमदास गायकवाड़, गोविंदलाल धींगरा, शंकरलाल ताम्रकार, आरएन वर्मा शामिल हैं। सुच्चा सिंह का कार्यकाल सिर्फ 2 माह का रहा। उन्हें पद बीच में छोडऩा पड़ा। बचे हुए 10 माह के लिए आलमदास गायकवाड़ ने महापौर की कुर्सी संभाली।


– शंकरलाल ताम्रकार एक-एक साल के दो कार्यकाल तक महापौर रहे। वहीं आरएन वर्मा 4 साल पद पर रहे।
– वर्ष 1981 से 1984 और फिर 1988 से 1994 तक निगम में प्रशासक का राज रहा।
– इसके बाद तीसरे चुनाव में भाजपा का सरोज पांडेय के माध्यम से पहली बार खाता खुला।

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