
रायपुर, गरियाबंद। गरियाबंद जिले के छुरा में रहने वाले शैलेंद्र ध्रुव जिसे एक दिन का कलेक्टर बनाया गया था। शैलेंद्र का निधन हो गया है। आपको बता दें, शैलेन्द्र ध्रुव प्रोजेरिया नाम की सीरियस बीमारी से ग्रसित थे। शैलेन्द्र 11वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे। शैलेन्द्र की बचपन से ही इच्छा थी कि वो कलेक्टर बने। 2021 में 16 साल की उम्र में उन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक दिन के लिए गरियाबंद का कलेक्टर बनाया था। वहीं कलेक्टर निलेश क्षीरसागर ने सारे प्रोटोकॉल का पालन किया था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी SP कॉन्फ्रेंस में शैलेंद्र ध्रुव को अपनी बगल में बैठाकर सारे अधिकारियों से उसकी मुलाकात भी करवाई थी।

बताया जा रहा है कि, सोमवार की रात उनके सीने में तेज दर्द हुआ, जिसके बाद एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां पर उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है।
CM भूपेश बघेल का ट्वीट
- सुबह दुखद सूचना मिली.
- शैलेंद्र ध्रुव अब हमारे बीच नहीं रहे. गरियाबंद के छुरा के ग्राम मेडकी डबरी के रहने वाले शैलेंद्र प्रोजेरिया बीमारी से ग्रसित थे.
- हमने उसकी एक दिन का कलेक्टर बनने की इच्छा तो पूरी कर दी थी लेकिन ईश्वर की कुछ और इच्छा थी.
- भगवान उसका ख्याल रखें. घर वालों को हिम्मत मिले. ॐ शांति:

क्या है प्रोजेरिया सिंड्रोम
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रोजेरिया सिंड्रोम एक दुर्लभ और जानलेवा बीमारी है। इसे बेंजामिन बटन के नाम से भी जाना जाता है। अमेरिकी की मशहूर क्लीवलैंड क्लीनिक का कहना है कि यह बीमारी इतनी दुर्लभ है कि दुनियाभर में दो करोड़ लोगों में से लगभग एक को ही प्रभावित करती है। प्रोजेरिया रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, पूरी दुनिया में इस समय लगभग 350 से 400 बच्चे प्रोजेरिया से पीड़ित हैं।

क्यों होती है यह बीमारी?
विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों में यह बीमारी लैमिन-ए-जीन में गड़बड़ी होने के कारण होती है। इस बीमारी के संकेत पहले से नहीं मिलते, यह अचानक ही हो जाती है, लेकिन दो साल तक की उम्र में बच्चों में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?
- बच्चों की लंबाई और वजन का कम होना
- शरीर का कमजोर होना
- सिर के बाल झड़ जाना
- सिर का आकार बढ़ जाना
- किसी बुजुर्ग व्यक्ति की तरह त्वचा का ढीला होना
- होंठ पतले होना

कितनी खतरनाक है यह बीमारी?
बच्चों की उम्र लगभग दो साल होने तक इस बीमारी का पता तो चल जाता है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि बहुत जल्द ही यह बीमारी बच्चों को मौत की ओर ले जाती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की लगभग 20 या 21 साल की उम्र में मौत हो जाती है। वैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज की खोज में जुटे हुए हैं, लेकिन अभी तक इसका इलाज नहीं मिल पाया है।


