- “स्वयंसिद्धा का काम दुनिया से बिल्कुल हटकर है”- डॉ अरुणा पल्टा
- “बेलन चक्की और कलम” साहित्यिक गोष्ठी में गृहणियों ने साबित की अपनी योग्यता- डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
भिलाई। भिलाई में स्वयंसिद्धा का साहित्यिक गोष्ठी संपन्न हुआ। यह गोष्टी अपने आप में एक अभिनव आयोजन था। इस कार्यक्रम में महिला सम्मान समारोह में प्रथम बार किसी गृहणी को स्वयंसिद्धा सम्मान दिया गया। जिसने आयोजन को खास बना डाला। सोमवार को भिलाई निवास के कॉफी हाउस सभागार में आयोजित कार्यक्रम स्थल पर एक बड़ी सी पत्थर की चक्की थी जिसमें से हिंदी के अक्षर बाहर झूल रहे थे, जगह-जगह हाथ की बनाई कलाकृतियों से मंच सजा हुआ था, सभा स्थल की दीवारों पर अमृता प्रीतम, ममता कालिया, चित्रा मुद्गल, शिवानी, मदर टेरेसा आदि के वक्तव्य उनकी तस्वीरों के साथ चमक रहे थे। “स्वयंसिद्धा सम्मान’ समारोह में पांच महिलाओं का सम्मान हुआ लेकिन उसमें एक पद गृह स्वामिनी का था जो कि बिल्कुल अलग था। इस रचनात्मक कार्यक्रम मे जब मुख्य अतिथि में डॉ. अरुणा पल्टा, कुलपति हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग पहुंची। तो उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि इस कार्यक्रम में आकर मैं अभिभूत हूं और संस्था के काम देखकर मैं निश्चित रूप से अति प्रसन्न हूं ।मैं स्वयं सेवानिवृत्ति के बाद स्वयंसिद्ध समूह में प्रवेश करना चाहूंगी जिससे मैं उनके साथ मिलकर समाज के लिए काम कर सकूं”
कार्यक्रम अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ परदेशी राम वर्मा, प्रमुख वक्ता के रूप में सरला शर्मा, संतोष झांझी ,एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुधीर शर्मा थे। संतोष झांझी ने अपनी लिखी ग़ज़ल मधुर स्वर में सुनाई तो हाल तालिया की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, सरला शर्मा जी ने अपने चिर परिचित अंदाज में सबका दिल जीत लिया उन्होंने कहा कि पुरुषों ने अपने बनाए एग्रीमेंट पर महिलाओं से बिना पूछे साइन करवा लिए,इसमें घर की जिम्मेदारी व बच्चों की देखभाल लिखी थी लेकिन इस कलम को उठाकर अब महिलाएं अपने स्वयं की भावनाओं को लिखना चाहती है तो अब उन्हें कोई रोक नहीं सकता। डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि दुनिया का कोई भी बच्चा पहला जिस शब्द का उच्चारण करता है वह माँ है इसलिए माँ से बढ़कर रचनाकार और कोई नहीं। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ परदेशी राम वर्मा ने अपनी विद्वता व ज्ञान से सबको चमत्कृत कर दिया। श्रोता उन्हें मंत्र मुग्ध होकर सुनते रहे व समृद्ध होते रहे।
कार्यक्रम की आयोजक व स्वयंसिद्धा की निदेशक अध्यक्ष डॉ सोनाली चक्रवर्ती ने बताया कि पिछले 10 वर्षों से महिलाओं को संगीत साहित्य संस्कृति से जोड़ने का प्रयास निरंतर जारी है हम अपने ऑनलाइन ऑफलाइन व्यक्तित्व विकास ट्रेनिंग के द्वारा महिलाओं को अपने मनोभावों को लिखने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे वह मानसिक अवसाद से बाहर आ सके। और आज हमने खुद का साहित्यिक गोष्ठी आयोजन किया है। कार्यक्रम में पांच अलग-अलग क्षेत्र की महिलाओं को स्वयंसिद्ध सम्मान से सम्मानित किया गया जिसमें गृह स्वामिनी के रूप में श्रीमती यमुनोत्री वर्मा, शिक्षा के क्षेत्र से पुष्पा पुरुषोत्तमन, काउंसलिंग व शिक्षा के क्षेत्र से डॉ. मिट्ठू, चिकित्सा के क्षेत्र से डॉ. मीता दे एवं पत्रकारिता के क्षेत्र से छत्तीसगढ़ आसपास की प्रधान संपादक शेफाली भट्टाचार्य को सम्मानित किया गया। इसके साथ ही वरिष्ठ पत्रकार टीकम सिंह पिपरिया,गीतकार मयंक चतुर्वेदी, वरिष्ठ हास्य कवि गजराज दास महंत, रायपुर की वरिष्ठ रचनाकार नीलिमा मिश्रा की भी रचनाएं सुनी गई व उन्हें सम्मानित किया गया। स्वयंसिद्धा की सदस्य एवं छत्तीसगढ़ की रचनाकार शीलू लूनिया की किताब “गर्भ के संस्कार फलीभूत होते हैं” का विमोचन अतिथि गणों द्वारा किया गया।
चतुर्थ सत्र में स्वयंसिद्धा की सदस्यों द्वारा रचनाओं का पाठ किया गया जिसमें कमल चक्रवर्ती, कोमल घोष, रत्ना दुफारे ,रंजना सूरज,श्रद्धा मिश्रा,आरती तिवारी ,काकोली चौधरी आदि शामिल थी। स्वयंसिद्धा की पांचो क्लब ग्रुप अपराजिता, स्वस्तिका ,तेजस्विनी, विश्वरूपा एवं जागृति की सदस्यों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन मेनका वर्मा व धन्यवाद ज्ञापन सीमा कनोजे ने किया। कार्यक्रम में विशेष सहयोग डॉ रजनी नेल्सन, संदीप चक्रवर्ती,अर्चना सेनगुप्ता,लक्षिता वर्मा, राजकुमारी कनोजे,शीला प्रकाश,वंदना नाडंबर,नीरा लखेरा ,रीता वैष्णव,बिंदु नायक आदि ने किया। कार्यक्रम में भारी संख्या में महिलाएं उपस्थित रही।