दादी से प्रेरित होकर नौकरी छोड़ मटपरई कला को अपनाया, हर महीने 50 हजार रुपए कमा रहे दुर्ग के अभिषेक

दुर्ग। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद दुर्ग जिले के डुमरडीह गांव के अभिषेक सपन ने नौकरी छोड़कर विलुप्त हो रहे मटपरई शिल्प को अपनाया। इलेक्ट्रॉनिक एंड टेली कम्युनिकेशन में बीटेक करने के बावजूद उन्होंने इस पारंपरिक कला को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और आज वे हर महीने 40-50 हजार रुपये कमा रहे हैं।

रायपुर राज्योत्सव में अभिषेक के आर्टवर्क को काफी पसंद किया गया। अब तक वे इस कला से 15 लाख रुपये से अधिक कमा चुके हैं। अभिषेक का उद्देश्य मटपरई कला को दुनियाभर में पहचान दिलाना है। इसके लिए वे सोशल मीडिया और विभिन्न प्रदर्शनियों के माध्यम से इसे बढ़ावा दे रहे हैं और समय-समय पर लोगों को इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं।

मटरपरई की कलाकार थीं दादी

अभिषेक बताते हैं कि उनकी दादी मटपरई की कलाकार थीं, जो मिट्टी और कागज की लुगदी से खूबसूरत खिलौने और टोकरी बनाती थीं। इस विरासत से प्रेरित होकर अभिषेक ने बचपन में ही इस कला से जुड़ाव महसूस किया और आज इसे अपने पैशन के रूप में अपना लिया है। मटपरई शिल्प छत्तीसगढ़ की प्राचीन कला है, जिसमें मिट्टी और कागज के मेल से टोकरी, खिलौने और अन्य सजावटी वस्तुएं बनती हैं।

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