साइंस कॉलेज दुर्ग में जनजातियों के गौरवपूर्ण अतीत पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित… विधायक गजेंद्र यादव रहे चीफ गेस्ट,

दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय (साइंस कॉलेज), दुर्ग में आज एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य जनजातीय समाज के गौरवपूर्ण अतीत और उनके ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान को समझाना था। यह कार्यक्रम विशेष रूप से युवा पीढ़ी को जनजातीय समाज के इतिहास से परिचित कराने के लिए आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना, अतिथियों का स्वागत, स्वागत गान और राज्य गान से हुई। इसके बाद महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी गईं।

कार्यशाला की शुरुआत और उद्देश्य
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय कुमार सिंह ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह कार्यशाला जनजातीय समाज के योगदान को समझने और उसे आगामी पीढ़ी तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण अवसर है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की योजनाओं के तहत आयोजित किया गया है और इसका उद्देश्य राष्ट्र निर्माण में जनजातियों के योगदान को पहचानना है।

मुख्य अतिथि का संबोधन
कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में दुर्ग शहर के विधायक गजेन्द्र यादव ने अपने विचार रखे। उन्होंने जनजातियों के पर्यावरण संरक्षण और भारतीय संस्कृति में उनके योगदान पर विस्तार से बात की। यादव ने विशेष रूप से आदिवासी जनजातियों की अंग्रेजों के खिलाफ भूमिका पर प्रकाश डाला और उनके द्वारा देवगुड़ी, बूढ़ा देव जैसे प्राचीन देवताओं के अस्तित्व और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को रेखांकित किया।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि का संबोधन
महाविद्यालय के नवनियुक्त जनभागीदारी अध्यक्ष और कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शिवेन्द्र परिहार ने भी जनजातियों के महत्व को समझाते हुए कहा कि ये समुदाय अपनी कठिन परिश्रम और सरल जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने उदाहरण के तौर पर जनजातियों के पर्यावरण संरक्षण और उनके धार्मिक अनुष्ठानों के महत्व पर चर्चा की। परिहार ने यह भी कहा कि अगर हमें अपना पर्यावरण संरक्षित करना है, तो हमें जनजातियों को संरक्षित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी सरजियस मिंज का उद्बोधन
कार्यशाला के मुख्य वक्ता सरजियस मिंज, पूर्व अपर मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ शासन ने जनजातियों के ऐतिहासिक योगदान और उनकी भूमिका पर गहरी चर्चा की। उन्होंने बताया कि जनजातियां 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले अंग्रेजों के खिलाफ विरोध करती रही हैं। उन्होंने जनजातियों की कला, संस्कृति और प्राकृतिक संरक्षण के प्रयासों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का समापन
कार्यशाला के अध्यक्ष डॉ. राजेश पांडेय, क्षेत्रीय अपर संचालक, उच्च शिक्षा, दुर्ग संभाग ने भारत में जनजातियों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की भूमिका पर बात की। उन्होंने गोविंद गुरु, सिद्धो कानों, बुद्धु भरत और मांझी जैसे महान व्यक्तित्वों की भूमिका का उल्लेख किया और कहा कि हमें जनजातियों के बारे में अपनी सोच बदलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जनजातियाँ कभी असभ्य नहीं रही, बल्कि इनका जीवन तरीका प्रकृति से जुड़ा हुआ और अत्यधिक सभ्य है।

कार्यशाला का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ और डॉ. दिव्या मिंज ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकगण, कर्मचारियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में विद्यार्थी और विभिन्न सामाजिक संगठन भी उपस्थित रहे। यह कार्यशाला जनजातीय समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान को याद करने और उनकी भूमिका को महत्व देने का एक प्रयास था। इस आयोजन ने युवा पीढ़ी को जनजातीय समाज के महत्व और उनके योगदान को समझने का अवसर प्रदान किया।

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