जगदलपुर। लंबे समय से बस्तर अंचल में भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों की जीत के आधार स्तंभ रहे वैश्य समुदाय के नेताओं को दरकिनार करना और अन्य वर्गों की तुलना में लगातार कम हो रही उनकी भागीदारी से उपेक्षित वैश्य समाज की नाराजगी के स्वर बुलंद होने लगी है। इसका खामियाजा प्रदेश की राजनीति में विपक्ष में बैठी कांग्रेस से अधिक सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को नगरीय निकाय चुनाव में ज्यादा उठाना पड़ सकता है।

खबरों के मुताबिक नाराजगी की वजह विधानसभा चुनाव 2023 में आदिवासी अंचल की एकमात्र सामान्य वर्ग की सीट जगदलपुर से कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन विधायक जो स्वयं वैश्य समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं उनका टिकिट काटा जाना माना जा रहा है। वहीं समाज के लोगों को भाजपा से काफी उम्मीद थी कि वह वैश्य समाज से किसी सदस्य को टिकिट देंगे, लेकिन जब बारी भाजपा की आय़ी तो उन्होंने भी किसी अन्य समुदाय को महत्व देकर वैश्य समाज को ठेंगा दिखा दिया।
बहरहाल, विधानसभा चुनाव के बाद जिला अध्यक्ष की नियुक्ति में भी वैश्यों में से किसी भी नेता को तरज़ीह नहीं दी गई और उसके बाद नगरीय निकाय में जगदलपुर से महापौर के लिए सीट अनारक्षित मुक्त होने के बाद जगदलपुर में भीतरखाने भाजपा से किसी वैश्य नेता को टिकट देने की मांग उठ थी, लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया। लगातार हो रही उपेक्षा से जगदलपुर का वैश्य समुदाय यदि नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस पार्टी पर भरोसा जताते हुए उनके पाले में चला जाये तो कोई बड़ा अचरच नहीं होगा।
सूत्रों की मानें तो अंदर ही अंदर वैश्य समुदाय ने अपनी आवाज बुलंद करनी भी शुरु कर दी है और चुनाव में अपने मताधिकार के माध्यम से यह बता सकते हैं कि कैसे भाजपा सरकार उनके साथ छल कर रही है। उनके हिस्से का कोटा किसी अन्य समुदाय पर लुटा रही है। संख्या में कम होने के बाद भी वैश्य समुदाय चुनावी परिणाम को बदलने का माद्दा रखता है।