शिरीश या रिकेश…जिलाध्यक्ष की कुर्सी के सबसे करीब, नवरात्रि में मिल सकती संगठन की कमान, क्योंकि…

भिलाई। भाजपा संगठन में जिलाध्यक्ष को लेकर कभी भी फैसला हो सकता है। फैसले की घड़ी नजदीक आ रही है। नवरात्रि में इस पर संगठन फैसला ले सकता है। अब सवाल ये है कि जिलाध्यक्ष की कमान संभालेगा कौन? भाजपा जिलाध्यक्ष वीरेंद्र साहू की जगह लेने के लिए कई दावेदार मैदान में है। कुछेक गुट वाले हैं तो कुछेक निर्गुण नेता भी हैं। जो जिलाध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो गए हैं।

इनमें से कुछ तो आरएसएस से जुड़े लोग हैं। जिनके नाम की चर्चा जिलाध्यक्ष के लिए चल रही है। इन सबमें दो नाम जिलाध्यक्ष की कुर्सी के बेहद करीब है। वो सिर्फ दो नाम है। पहला शिरीश अग्रवाल का और दूसरा नाम रिकेश सेन। शिरीश प्रदेश भाजपा के कार्यसमिति सदस्य हैं तो रिकेश पांच बार के भाजपा पार्षद। अब आपको बताते हैं कि आखिर ये दोनों ही क्यों जिलाध्यक्ष की कमान संभाल सकते हैं। उसके पीछे कुछ वजह है…कुछ राजनीतिक तो कुछ सामाजिक…।

शिरीश अग्रवाल ही क्यों

  • सबसे बड़ी वजह संघीय होने का फायदा मिल सकता है। लंबे समय से संघ के लिए काम कर रहे हैं। कई पदों में रहकर संघ द्वारा दिए दायित्वों का निर्वहन किए हैं। पवन साय के पसंदीदा चेहरों में से शिरीश अग्रवाल को एक माना जाता है। कहते हैं कि प्रदेश की टीम में पिछली दफा पवन साय की वजह से ही शामिल किए गए थे।
  • शुरू से ही संघ से जुड़े रहे और संघ से भाजपा की राजनीत में सक्रिय रूप से आए। अब प्रदेश भाजपा के कार्यसमिति सदस्य हैं। प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रहते हुए उन्होंने पार्टी द्वारा दिए गए हर टास्क को पूरा किया है। वो भी बिना किसी विवाद के।
  • जिले के चार कद्दावार नेता सरोज पांडेय, विजय बघेल, प्रेमप्रकाश पांडेय और विद्यारतन भसीन के गुट में कभी शामिल नहीं हुए। इनकी पहचान निर्गुट है। चारों नेताओं के साथ में बेहतर संबंध भी है। किसी से कोई विवाद की खबरें कभी नहीं आई है।
  • सबसे बड़ी पॉजिटिव बातें शिरीश की प्रदेश संगठन से तालमेल बेहतर और इन चारों नेताओं के साथ समन्वय स्थापित करने में सक्षम है। आने वाले समय में विधानसभा का चुनाव है। भिलाई की दोनों सीटों पर सीधे प्रभाव डाल सकते हैं।
  • निर्गुट होने का फायदा शिरीश को मिल सकता है और समन्वय स्थापित करने के लिए चुनाव में शिरीश जैसे जिलाध्यक्ष को कमान दी जा सकती है। लेकिन एक बड़ी कमी जनाधार का नहीं होना और सामान्य वर्ग का होना भी हो सकता है।
  • शिरीश अग्रवाल कहते हैं- आलाकमान से मिले हर आदेश का पालन किया है। आगे भी पालन करते रहेंगे।

रिकेश सेन ही क्यों जिलाध्यक्ष की कुर्सी के बेहद करीब…

  • भाजपा के पांच बार के अकेले पार्षद जो अलग-अलग वार्डों से चुनाव लड़कर जीते हैं। 25 वर्षों से सक्रिय राजनीति में काम कर रहे हैं। पिछले कार्यकाल में संगठन द्वारा दिए गए नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
  • वैशालीनगर विधानसभा के लिए दावेदारों में पिछली दफा रिकेश समेत राकेश और विद्यारतन भसीन के नाम का पैनल बना था। लेकिन टिकट रिकेश को नहीं मिली थी।
  • छत्तीसगढ़िया चेहरा और पिछड़ा वर्ग से आने सबसे बड़ा फायदा रिकेश को मिल सकता है। ओबीसी वर्ग से कांग्रेस के जिलाध्यक्ष मुकेश चंद्राकर भी हैं। इससे पहले भी कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग की तुलसी साहू को जिलाध्यक्ष बनाया। भाजपा भी रिकेश के नाम पर दांव खेलकर छत्तीसगढ़ियों को खुश कर सकती है।
  • प्रदेश संगठन के नेताओं से बेहतर तालमेल है। पिछली बार निकाय चुनाव में मिली टिकट इसका उदाहरण है। क्योंकि संगठन के नेताओं ने ही हस्तक्षेप किया। तब उन्हें रामनगर से दूसरी बार टिकट मिली।
  • 2023 में चुनाव है और उससे भाजपा को लड़ने और ग्राउंड में उतरकर काम करने वाले जिलाध्यक्ष की जरूरत होगी। इस काम में रिकेश माहिर हैं। क्योंकि रिकेश के पास महिलाओं की एक बड़ी मंच सखी मंच है। इसके अलावा हर वार्ड में उनकी अलग से टीम। यही नहीं, बड़े विरोध प्रदर्शन में भीड़ जुटाने की ताकत रखते हैं।
  • रिकेश सेन ने कहा- मैं पार्टी का एक सिपाही हूं। एक सिपाही हर युद्ध के लिए तैयार रहता है। 2023 हमारे लिए युद्ध है। नियुक्त और आदेश संगठन का काम है।

जिलाध्यक्ष की दौड़ में इनके नाम की भी चर्चा…
भाजपा से जुड़े लोगों की माने तो जिलाध्यक्ष की दौड़ में प्रवीण पांडेय, डॉ. रतन तिवारी, डॉ. दीप चटर्जी, शंकरलाल देवांगन के नाम की भी चर्चा है। वहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष संजय दानी, त्रिलोचन सिंह के नाम पर भी बातें हो रही है।

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