छत्तीसगढ़ में टेंडर घोटाला: कहीं CM भूपेश बघेल का ड्रीम प्रोजेक्ट खतरे में तो नहीं? डिपार्टमेंट पर उठ रहे सवाल; जानिए पूरा मामला

कोरबा। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में आदिवासी (ट्राइबल) विभाग में गजब का खेला हो रहा है। मामला आदिवासी विभाग का है। जंहा बिना टेक्निकल सेटअप के 44 करोड़ के निर्माण कार्य को आपस में बांटने की प्लानिंग लिखा गया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विभाग में ट्रांसफर से स्टे पर कुर्सी पाने वाले बाबू को फिर से निर्माण शाखा का प्रभारी बनाया गया है जिससे वे पुराना दोहरा सके और अँधा बांटे रेवड़ी औइर अपने अपने को देय की कहावत को चरितार्थ कर सके। सूत्र बताते है कि निर्माण एजेंसी को काम न देकर ट्रायबल को बड़े निर्माण कार्यो को सौपना अपने आप में संदेहास्पद है।

क्योकि पहले भी निर्माण कार्य के नाम पर ट्राइबल में करोडो की बंदरबांट हो चुकी है और ऐसे में उन्हें फिर से 44 करोड़ का काम देना चोर से चौकीदारी कराने जैसा है।जिले के अन्य निर्माण एजेंसियों पर गौर किया जाये तो आरईएस और पीडब्लूडी के पैसा महज गिनती के काम है और उनका टेक्निकल टीम बिना काम के सैलरी उठा रहे है उन्हें काम सौपने के बजाये ट्रायबल डिपार्टमेंट को एजेंसी बनना सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट को उलझना नहीं तो क्या है ? वैसे भी ]दो महीने के बाद स्कूलों का नया सत्र शुरू हो जायेगा और आत्मानन्द स्कुल का निर्माण कागजो में उलझकर रह जायेगा।

निर्माण शाखा में पदस्थ रहे बाबू का ट्रांसफर पेंड्रा हो चुका है। स्थांतरण को बिना कायदे के बताते हुए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने उन्हें तत्कालीन राहत देते हुए सहायक आयुक्त को पक्ष रखने को कहा गया था। इसका लाभ उठाते हुए बाबू ने फिर से विभाग में ज्याइनिंग दी। इसमें मजे वाली बात यह है जिस कारिस्तानी की वजह से उनका ट्रांसफर किया गया था उसी शाखा का प्रभारी फिर से बनाया गया है । जिससे पूर्व की तरह जुगाड़ जंतर कर अपने उच्च अधिकारी को लपेटे में ले सके।

डिपार्टमेंट का ये ऐसे नवाब है जो अपने साथ साहब को भी ले डूबते है। पूर्ववर्ती सरकार में एजुकेशन हब निर्माण में कायदे को ताक पर रखकर भुगतान करने के आरोप में तत्कालीन सहायक आयुक्त श्रीकांत दुबे नप गये थे और एसीबी की जांच की रडार में आए जिसकी जांच आज भी लंबित है।उसके बाद गुरुजी से इंजीनियर बने विभागीय उप अभियन्ता के नाम करोड़ो का एडवांस जारी करने के मामले में भी सब इंजीनियर पर सस्पेंशन की गाज गिरी थी। मतलब उनके काम के बारे में जंहा जंहा पग धरे वंहा वंहा बंटाधार कहे तो अतिश्योक्ति नही होगा।

बाबू की वजह से आज ट्राइबल विभाग का नाम पूरी तरह से बदनाम हो चुका है। बाउजूद इसे विभागीय लिपिक पर कोई कड़ी कार्यवाही नही की जा सकी है।उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में महालेखाकार रायपुर ने कई बिंदुओ पर आरोपपत्र लगाकर निलंबित बाबू से जवाब मांगा था लेकिन दुबेजी चौबेजी बनकर फिर आ गए । ये बात अलग है वे विलक्षण प्रतिभा के धनी होने का परिचय देते हुए 4 बरसो में जवाब तैयार नही कर सके। मतलब अपनी गलती साबित होने के बाद भी मूंछे पर ताव देते हुए नौकरी करते रहे और अपनी झोली भरते रहे है।

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