चेक बाउंस मामले में हाउसिंग बोर्ड के ठेकेदार को सजा: कोर्ट उठने तक सजा के साथ-साथ 5 लाख रुपए अर्थदंड…9 साल तक दुर्ग कोर्ट में चला केस

भिलाई। 9 साल पुराने एक मामले में दुर्ग हाउसिंग बोर्ड के ठेकेदार को सजा हुई है। कोर्ट उठने तक की सजा के साथ-साथ 5 लाख रुपए का अर्थदंड लगा है। आरोपी ठेकेदार का नाम जितेंद्र शर्मा है। वह हाउसिंग बोर्ड का ठेकेदार है। 2009 के एक मामले में दुर्ग कोर्ट में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी अंकिता गुप्ता की कोर्ट में यह फैसला हुआ है।

अर्चना ब्रिक्स के संचालक रंजीत सिंह अरोरा ने दुर्ग कोर्ट में इस मामले को लेकर गए थे। आरोपी जितेंद्र शर्मा ने रंजित को 3 लाख रुपए नहीं दिए। जो चेक दिया था, वह बाउंस हो गया। इसके बाद मामले को लेकर रंजित सिंह अरोरा कोर्ट गए। रंजीत की ओर से अधिवक्ता अनुराग ठाकुर ने याचिका दायर की। जहां सुनवाई होने के बाद फैसला आया है।

जानकारी के मुताबिक, रंजीत ने ठेकेदार जितेंद्र शर्मा को ईंट सप्लाई की थी। 3 लाख रुपए की ईंट के बदले में जितेंद्र ने चेक दिया। जो बाउंस हो गया। बावजूद पैसे नहीं दिया। इसी से पीड़ित होकर रंजीत कोर्ट गया।

जहां ये फैसला आया है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है- धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम का अपराध आशयित अपराध की श्रेणी में आता है। जिसमें व्यक्ति यह जानते हुए कि उसके खाते में पर्याप्त राशि नहीं है फिर भी दुर्भावनावश चेक जारी कर छल करता है। ऐसे अपराध से ना केवल आर्थिक क्षति होती है वरण बैंकिंग प्रणाली पर आम व्यक्तियों का विश्वास समाप्त हो जाता है।


(16) परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद प्रकरण वर्ष 2013 से लंबित है आरोपीगण का द्वारा परिवाद के संस्थित दिनांक से आज दिनांक तक परिवादी को ₹300000 नहीं लौटाया गया है जिससे परिवादी को आर्थिक एवं मानसिक क्षति होने कि संभावना से इंकार नही किया जा सकता है

। उक्त परिस्थिति को दृष्टिगत रखते हुए आरोपी जितेंद्र शर्मा को धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय उठने तक की सजा एवं 5,00,000 (पांच लाख रुपये) अर्थदंड की राशि से दंडित किया जाता है। अर्थदंड की राशि का कुल ₹500000 धारा 357 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रतिकर के रूप में परिवादी को पेय होगा।

प्रतिकार की राशि 30 दिन के भीतर अदा नहीं किए जाने पर आरोपीगण जितेंद्र शर्मा को 06 माह का साधारण कारावास पृथक से भुगताया जाए। परिवादी द्वारा आरोपी जितेन्द्र शर्मा द्वारा संचालित फर्म को भी आरोपी बनाया है। चूंकि फर्म आरोपी द्वारा संचालित है एवं वह उसका स्वामी है इसलिए अर्थदंड की राशि अदा करने का दायित्व आरोपी जितेन्द्र शर्मा पर है । अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय का आदेश इस दंण्डादेश पर प्रभावी रहेगा।

(17) आरोपीगण के जमानत मुचलके धारा 437 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रस्तुत जमानत बंधपत्र निर्णय दिनांक से 6 माह की अवधि तक प्रभावशील रहेंगे । तत्पश्चात स्वमेव निरस्त समझा जावेगा।

(18) प्रकरण प्रस्तुत दस्तावेज प्रकरण में संलग्न रखा जावे अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्देशानुसार उक्त दस्तावेजों का व्ययन किया जावे।

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