आर्य समाज सुपेला में मनाई गई घासीदास जयंती; महेन्द्र खरे ने कहा- सतनाम पंथ समाज एवं आर्य समाज दोनों समाज एकता का प्रतीक हैं; पढ़िए

भिलाई। आर्य समाज सुपेला में साप्ताहिक सत्संग एवं गुरू घासीदास जयन्ती का कार्यक्रम आयोजित किया गया। आर्य जनों के द्वारा वेद मन्त्रों से विशेष आहुतियाँ दी गई। प्रधान रामनाथ राय ने कहा- संत हमेशा समाज कल्याण करते रहे है। कोषाध्यक्ष पटेल ने कहा – घासीदास जी हमेशा पशु-पक्षियों से भी प्रेम करने की सीख देते थे, उन पर क्रूरतापूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे।

महामंत्री राजाराम प्रसाद ने कहा – गुरु घासीदास जी ने समाज में समाज को एकता भाईचारे समरसता का संदेश दिया। महेन्द्र खरे ने कहा- सतनाम पंथ समाज एवं आर्य समाज दोनों समाज एकता, भाइचारे और समरसता इत्यादि बात करते हैं। ब्राह्मणों के प्रभुत्व को नकारा, जातिगत भेद-भाव, मूर्तिपूजा का विरोध किया एवं मानव सेवा ही सर्वश्रेष्ठ सेवा हैं तथा छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जनमानस पर प्रभाव है। इस कारण उन्होंने संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी भी कह कर पुकारते है।

आचार्य राजेश ने कहा- छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह जी के जीवन में बाबा गुरु घासीदास जी का विशेष प्रभाव पड़ा था। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साधक ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया।

उन्होंने आगे कहा कि, यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकड़ते गया और धीरे-धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेब और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं।

इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी। चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था उनमे अद्भुत ताकत और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। रामदेव जी ने आए हुए अतिथियों एवं सभी लोगों को धन्यवाद और आभार प्रकट किया।

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