मेकाहारा अस्पताल में बाउंसरों ने पत्रकार से की मारपीट, जान से मारने की दी धमकी, आक्रोशित पत्रकारों ने सीएम हाउस के सामने दिया धरना, कानून व्यवस्था और पुलिस की निष्पक्षता पर उठाए सवाल

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित मेकाहारा अस्पताल में रविवार रात को रिपोर्टिंग के लिए पहुंचे एक पत्रकार के साथ सुरक्षा में तैनात निजी बाउंसरों ने मारपीट कर जन से मारने की धमकी दी। इस घटना के बाद पत्रकारों में आक्रोश है। रात में ही पत्रकारों ने सीएम हाउस के बाहर धरना देकर दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। इस मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है।

जानकारी के अनुसार, उरला में हुई चाकूबाजी की खबर की पुष्टि और जानकारी के लिए जब एक पत्रकार अस्पताल पहुंचा तो वहां ड्यूटी पर मौजूद बाउंसरों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया। उसे जबरन पीछे धकेला गया और रिपोर्टिंग से रोका गया। यह सब अस्पताल परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड भी हो गया है। इस घटना से पत्रकार संगठनों और मीडियाकर्मियों में गहरा आक्रोश है। उनका कहना है कि एक जिम्मेदार पत्रकार को अपनी ड्यूटी निभाने से रोकना और उसके साथ मारपीट करना अभिव्यक्ति की आज़ादी और प्रेस की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है।

घटना के बाद छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ, प्रेस क्लब और अन्य मीडिया संगठनों ने विरोध जताया है। उन्होंने मांग की है कि दोषी बाउंसरों को तत्काल बर्खास्त किया जाए, उन पर एफआईआर दर्ज हो, और पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान की जाए। साथ ही इस बात की भी मांग की जा रही है कि पुलिस विभाग इस मामले में अपनी भूमिका स्पष्ट करे और यह सुनिश्चित करे कि कानून व्यवस्था किसी भी दबाव में नहीं झुकेगी।

बाउंसरों की गुंडई और पुलिस की मौन स्वीकृति?

घटना के बाद जब पत्रकारों ने विरोध जताया और अस्पताल प्रशासन से जवाब मांगा तो हैरानी की बात यह रही कि अस्पताल प्रशासन ने बाउंसरों की कोई निंदा नहीं की, बल्कि पुलिस बल को तैनात कर दिया गया—वो भी पत्रकारों की संभावित विरोध रैली से निपटने के लिए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, इस विरोध के बीच शहर भर के निजी बाउंसरों को एकजुट होकर मेकाहारा अस्पताल के बाहर खड़ा कर दिया गया। यह दृश्य किसी फिल्मी गैंग की तरह था, जहां बाउंसरों की ताकत का प्रदर्शन हो रहा था। उधर पुलिस बल भी पूरी तैयारी में तैनात था। लेकिन पत्रकारों को सुरक्षा देने के लिए नहीं, बल्कि उन पर संभावित लाठीचार्ज करने के लिए।

कानून व्यवस्था और पुलिस की निष्पक्षता पर उठे सवाल

इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में कानून व्यवस्था और पुलिस की निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। जब लोकतंत्र के प्रहरी माने जाने वाले पत्रकारों के साथ अन्याय होता है और पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है या दबंगों के पक्ष में खड़ी नजर आती है, तो यह सिर्फ प्रेस के लिए नहीं बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों के लिए भी खतरनाक संकेत है।

बाउंसरों को किस हद तक अधिकार?

सवाल यह भी उठता है कि अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर तैनात निजी सुरक्षा गार्ड और बाउंसरों को क्या अधिकार हैं? क्या उन्हें मीडिया की आज़ादी में हस्तक्षेप करने का प्रशिक्षण मिला है? क्या इन बाउंसरों का कोई पूर्ववृत्त जांचा गया है? अगर नहीं, तो यह अस्पताल प्रशासन की बड़ी चूक है। एक ओर जहां सरकार हर जगह पारदर्शिता और सूचना के अधिकार की बात करती है, वहीं दूसरी ओर राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में पत्रकारों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार चिंताजनक है।

सुरक्षा के नाम पर मनमानी

अस्पताल में प्राइवेट सुरक्षा एजेंसी के माध्यम से तैनात किए गए बाउंसरों की भूमिका पहले भी कई बार सवालों के घेरे में रही है, लेकिन इस बार तो उन्होंने सारी हदें पार कर दीं। एक पत्रकार, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, के साथ ऐसी बर्बरता प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाती है। अस्पताल प्रशासन भले ही मरीजों और परिजनों की सुरक्षा की दुहाई देता हो, लेकिन अगर सुरक्षा कर्मचारी ही गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाएं, तो आम नागरिकों का क्या होगा?

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