महामहिम द्रौपदी मुर्मू के बारे में कितना जानते हैं आप…? जिंदगी में देखे हैं बहुत उतार-चढ़ाव, पति और दो बेटों को खोने के बावजूद नहीं हारी हिम्मत

द्रौपदी मुर्मू…ये नाम अब सिर्फ नाम नहीं है। अब देश की महामहिम हैं। द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति होंगी। वे इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने वाली देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। गुरुवार को सुबह 11 बजे शुरू हुई काउंटिंग में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) की प्रत्याशी द्रौपदी ने यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (UPA) के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को तीसरे राउंड की गिनती में ही हरा दिया।
मुर्मू को जीत के लिए जरूरी 5 लाख 43 हजार 261 वोट तीसरे राउंड में ही मिल गए। थर्ड राउंड में उन्हें 5 लाख 77 हजार 777 वोट मिले। यशवंत सिन्हा इस राउंड में 2 लाख 61 हजार 62 वोट ही जुटा सके। इसमें राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों समेत 20 राज्यों के वोट शामिल थे। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेपी नड्‌डा ने मुर्मू के घर पहुंचकर उन्हें बधाई दी।

राष्ट्रपति चुनाव के वोटों की गिनती गुरुवार देर रात 4 राउंड में पूरी हुई। कुल 4754 वोट पड़े थे। गिनती के वक्त 4701 वोट वैध और 53 अमान्य पाए गए। कुल वोटों का कोटा 5,28,491 था। इसमें द्रौपदी मुर्मू को कुल 2824 वोट मिले। इनकी वैल्यू 6 लाख 76 हजार 803 थी। केरल से मुर्मू को सबसे कम सिर्फ एक और यूपी से सबसे ज्यादा 287 वोट मिले।

वहीं, यशवंत सिन्हा को कुल 1877 वोट मिले, जिनकी वैल्यू 3 लाख 80 हजार 177 रही। दूसरी तरफ सिन्हा को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम से एक भी वोट नहीं मिले, जबकि उन्हें सबसे ज्यादा 216 वोट पश्चिम बंगाल से मिले। वोट प्रतिशत की बात करें तो द्रौपदी मुर्मू को 64% और यशवंत सिन्हा को 36% वोट मिले।

एक नजर में द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी…
– जंगल पर आश्रित रहने वाली ओडिशा की संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

– 64 साल की मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की पहली महिला राष्ट्रपति हैं

– एनडीए के संख्याबल को देखते हुए उनकी जीत पहले से तय मानी जा रही थी, आज औपचारिक ऐलान भी हो गया

– देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली शांत, शालीन और थोड़ा सख्त स्वभाव वाली द्रौपदी का सफर मुश्किलों भरा रहा है

– अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत से ही उन्होंने आदिवासी, गरीबों, वंचितों के उत्थान के लिए काम किया

– कुछ ऐसा कि विपक्षी भी उनके मुरीद हो गए।

– राष्ट्रपति के लिए नामांकन के बाद मुर्मू ने कहा था, ‘देश में लगभग 10 करोड़ आदिवासी हैं और उनके 700 से ज्यादा समुदाय हैं

– दिल्ली से करीब 2000 किमी दूर, शहर की चकाचौंध से अनजान प्रकृति की छांव में मुर्मू का बचपन बीता

– वह 25 जुलाई को शपथ लेंगी।

– संथाल समुदाय से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था। उनके पिता और दादा प्रधान रहे।

– भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया।

– द्रौपदी भुवनेश्वर पढ़ने गईं। उस समय अपने गांव उपरवाड़ा से भुवनेश्वर जाकर पढ़ाई करने वाली वह इकलौती लड़की थीं। वह पढ़ाई में अव्वल थीं।

– पति और 2 बेटों की मौत के बाद द्रौपदी ने स्कूल के लिए दान में दे दी थी ससुराल की जमीन

– इस जमीन में छात्र-छात्राआों के लिए हॉस्टल के साथ-साथ एसएलएस स्कूल के नाम पर शिक्षण संस्थान संचालित हो रहा है

– राजनीति में आने से पहले अपने करियर की शुरुआत एक क्लर्क के तौर पर की थी

– 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्‍टेंट के रूप में काम किया

– 1994 से 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्‍टेंट टीचर के रूप में भी कार्य किया। बाद में राज्य की मंत्री बनीं।

– द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। इसी साल रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ

– साल 2000 में बीजू जनता दल और भाजपा की गठबंधन सरकार के समय वह मंत्री बनीं। उन्होंने परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभाला

– 2007 में मुर्मू को ओडिशा विधानसभा की ओर से साल के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

– मुर्मू का निजी जीवन त्रासदियों से भरा रहा है। मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था। उन्हें तीन संतानें हुईं- दो बेटे और एक बेटी। 2009 में उनके पहले बेटे की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। तीन साल बाद सड़क हादसे में दूसरे बेटे की भी जान चली गई। कार्डियक अरेस्ट से 2014 में पति का निधन हो गया।

– मुर्मू भाजपा की ओडिशा इकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष भी रहीं। उन्हें 2013 में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) के सदस्य के रूप में भी नामित किया गया था।

– साल 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। वह राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव भी रखती हैं।

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